आज का विचार

आज का विचार

वनेषु दोषा: प्रभवन्ति रागिणाम्,

गृहेषु पञ्चेन्द्रियनिग्रहस्तप:।

अकुत्सिते वर्त्मनि य: प्रवर्तिते,

निवृत्तरागस्य गृहं तपोवनम्।।

(शान्तिशतक -३०)

अर्थात् - आसक्ति का भाव रखने वाले में वन में रहने पर भी बुराईयां उत्पन्न हो जाती हैं। अपने घर में रहकर भी अपनी पांचों ज्ञानेन्द्रियों (नेत्र, कान, नाक, जीभ एवं त्वचा) को वश में रखना ही तपस्या है। जो व्यक्ति अनिश्चित मार्ग पर चलता है उस रागरहित व्यक्ति के लिए घर ही तपोवन है।

*????????????मङ्गलं सुप्रभातम्????????????*