मैं रहूं या ना रहूं , भारत ये रहना चाहिए -मिथिलेश द्विवेदी / भोलानाथ मिश्र
मैं रहूं या ना रहूं , भारत ये रहना चाहिए ।
__________________________
मिथिलेश द्विवेदी / भोलानाथ मिश्र
पद्मश्री शंकर महादेवन का यह गीत 18 वीं लोकसभा चुनाव के मद्देनजर दूसरे चरण के मतदान को देखते हुए ज्यादा प्रासंगिक लग रहा है __
देश से है प्यार तो......
हर पल ये कहना चाहिए....
मैं रहूं या ना रहूं , भारत ये रहना चाहिए । अभी 6 चरणों का मतदान होना है । प्रथम चरण में 102 लोकसभा सीटों पर कुल 63 प्रतिशत मतदाताओं ने उम्मीदवारों के राजनीतिक भविष्य को वोटिंग मशीन में बटन दबाकर लाक कर दिया है । 1 जून को अंतिम चरण के मतदान के बाद 4 जून को परिणाम दुनियां के सामने आ जाएगा । 2024 में जो भी सरकार बने वो भारत के लिए काम करे यही देश के 98 करोड़ मतदाताओं की इच्छा होनी चाहिए । सरकारें आयेंगी , जाएंगी लेकिन ये देश रहना चाहिए । इसी मंशा के साथ पहली लोकसभा के चुनाव से को सिलसिला शुरू हुआ है वह आजादी के अमृतकाल में 18वीं बार होने जा रहा है । आज की युवा पीढ़ी को यह शायद ज्ञात न हो कि पहली लोकसभा का चुनाव कैसे हुआ था । इस लिए यह जरूरी हो जाता है कि उस समय की स्थिति और परिस्थिति की जानकारी साझा करना जरूरी है
ऐसे हुआ था पहला चुनाव
_____________________
26 नवंबर , 1949 को संविधान सभा द्वारा अपनाए गए संविधान को 26 जनवरी , 1950 को लागू कर दिया गया । 25 अक्टूबर , 1951 से लेकर 21 फरवरी , 1952 तक लोकसभा और विधान सभाओं के चुनाव हुए थे । पहली लोकसभा के लिए 489 सदस्य निर्वाचित हुए थे ।पहले चुनाव आयुक्त सुकुमार सेन थे जिनकी नियुक्ति प्रथम प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू और प्रथम गृह मंत्री सरदार बल्लभ भाई पटेल से सलाह ले कर की थी । उस समय 86 लोकसभा क्षेत्र ऐसे थे जहां एक ही सीट से दो सदस्य चुने गए थे , एक सामान्य और एक अनुसूचित जाति से 1949 उम्मीदवार चुनाव लड़े थे ।मतगणना 10 दिन तक चली थी कांग्रेस को 364 सीट और 44.99 फीसदी वोट मिले थे । सोसलिस्ट पार्टी को 12 सीटों पर जीत मिली थी और कुल 10. 59 प्रतिशत मत हासिल हुए थे । भारतीय कम्यूनिष्ट पार्टी 16 सीट और 3. 29 प्रतिशत वोट मिला था ।भारतीय जनसंघ को 3 सीट , 3. 06 प्रतिशत मत , अखिल भारतीय राम राज्य परिषद को 3 सीट , 1. 97 प्रतिशत वोट ,कृषक लोक पार्टी को 1 सीट , 1.41फीसदी वोट ,पीपुल्स डेमोक्रेटिक फ्रंट को 7 सीटें , 1.29 प्रतिशत वोट ,और किसान मजदूर प्रजा पार्टी को 9 सीट और 5. 79 प्रतिशत वोट मिला था ।उस समय कुल 53 राजनीतिक दल पंजीकृत थे । चुनाव में कुल 533 निर्दल प्रत्याशी थे ।
राजनीतिक दलों के नेता थे
_____________________
भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के नेता थे पंडित जवाहर लाल नेहरू जो यूपी के फूलपुर लोकसभा क्षेत्र से निर्वाचित हुए थे । लोकसभा में बहुमत दल के नेता थे जिन्हें राष्ट्रपति डॉक्टर राजेंद्र प्रसाद ने पद और गोपनीयता की शपथ दिलाई थी ।भारतीय जनसंघ के नेता डॉक्टर श्यामा प्रसाद मुखर्जी थे जो लोकसभा के सदस्य निर्वाचित हुए थे । इन्हें नेहरू मंत्रिमंडल में कानून मंत्री बनाया गया था । शेड्यूल कास्ट फेडरेशन जो बाद में रिपब्लिक पार्टी बनी इसके नेता बाबा साहब भीमराव अंबेडकर जी थे । किसान मजदूर प्रजा पार्टी के नेता आचार्य कृपलानी थे । सोसलिस्ट पार्टी के नेता प्रख्यात समाजवादी विचारक डॉक्टर राम मनोहर लोहिया और उप नेता जय प्रकाश नारायण थे । कांग्रेस का चुनाव चिन्ह दो बैलों की जोड़ी था
तो सोसलिस्ट पार्टी का निशान बरगद का पेड़ तथा जनसंघ का चुनाव चिन्ह दीपक और प्रजा पार्टी का निशान
झोपड़ी थी ।
ये थे नारे
_________
कांग्रेस के खिलाफ नारे लगते थे __
' दो बैलों की जोड़ी है , एक अंधा एक कोढ़ी है '।'
नगरी नगरी द्वारे द्वारे
ढूंढू री नोकरिया , राम राम रटते रटते
बीती री उमरिया ' ।
कांग्रेस के लोग जनसंघ को निशाना बनाते हुए कहते
थे __ दीपक में तेल नाहीं , झोपडी
अनहार बा , जनसंघ के वोट देना
बिलकुल बेकार बा ।
सोसलिस्ट पार्टी के लोग कहते थे , भूखी जनता
करे पुकार , मत लाओ कांग्रेस सरकार ।
कनफोड़वा प्रचार , पोस्टर युद्ध , गांव गांव , शहर शहर प्रचार रात दिन होता था । गाने गाए जाते थे ,
हाथ जोड़ी , पांव पड़ूं , अर्जी
विनती करूं , समुझी बुझी वोट
देहे री वोटर वा ।
वोट डालने की प्रक्रिया
_________________
अलग अलग प्रत्याशियों के लिए अलग अलग बैलेट बॉक्स होते थे जिसपर चुनाव चिन्ह बना रहता था ।बैलेट पेपर मिलता था । मतदाता अपनी पसंद के उम्मीदवार के बॉक्स में मोहर लगा कर बैलेट पेपर को बैलेट बॉक्स में डाल देते थे । मतदानके अंत में बैलेट बॉक्स अभिकर्ताओं के समक्ष सिल पैक किए जाते थे ।मतगणना के समय मतों की अलग-अलग गड्डी बनाई जाती थी । 100_ 100 की गड्डी बनकर मतों की गिनती होती थी ।
वोटर की स्थिति
_________
वोटर चाहे 1952 का हो या फिर आजादी के अमृतकाल 2024 का हो , सभी की स्थिति कमोबेश वैसी ही रह गई । राजनीतिक दलों के द्वारा , राजनीतिक दलों के लिए , राजनीतिक दलों का लोकतंत्र जस के तस साबित दस्तूर है । डॉक्टर लखन राम जंगली ठीक ही कहते हैं ,
नेतन कर भारी बजार , वोट के के
देवों नंदो ।
प्रयाग के व्यंगकार कवि यस मालवीय की रचना भी प्रासंगिक लगती है __ वो जुलूस से लौटे हैं ,
पांव दबाओ राम सुभग । आओ भाई
राम सुभग , दरी बिछाओ राम सुभग
देखों कितने नारे हैं , उन्हे पचाओ
राम सुभग ।