बसंत ऋतु और आहार -विहार

बसंत ऋतु और आहार -विहार

 बसंत ऋतु में कैसा हो आहार 

बसंत ऋतु मूलतः चैत्र - बैशाख मास को मानते हैं। यह समय इस बार आधी मई तक पहुंच रहा है। किंतु अभी से मौसम में जो गर्मी देखने को मिल रही है वह यह बता रही है कि ग्रीष्म ऋतु का प्रभाव कुछ ज्यादा ही देखने को मिलेगा।

       स्वास्थ्य के दृष्टिकोण से ऋतुओं के अनुसार ही आहार लेने चाहिए, जिससे शरीर स्वस्थ बनी रह सके।

संपूर्ण वर्ष को छह ऋतुओं वर्षा, शरद, हेमन्त, शिशिर, बसन्त तथा ग्रीष्म में विभक्त किया गया है, और सभी ऋतुओं में अलग-अलग आहार की व्यवस्था आयुर्वेद शास्त्र में दी गई है।

       यदि इसका नियमित पालन किया जाए, तो किसी प्रकार के रोग उत्पन्न होने की सम्भावना नहीं रहती नहीं तो विविध प्रकार की बिमारियां बिन बुलाए मेहमान की तरह घेर लेती हैं।

    वसंत ऋतु में सूर्य की किरणों के तेज होने के कारण कफ कुपित होने लगता है। जिससे सर्दी, खांसी, दमा, नजला, जुकाम, साइनोसाइटिस, टांसलाइटिस, गले में खराश, पाचन शक्ति की कमी, व जी मिचलाने जैसे अनेक प्रकार के लक्षण प्रकट होते हैं।

इस ऋतु में खसरा, मीजल्स व एन्फ्लूएन्जा, जैसे कई प्रकार के वायरल इनफेक्शंस का भी प्रकोप देखने को मिलता है। सिर दर्द , बदन दर्द, बुखार, उल्टी -मतली,अरुचि, बैचेनी, भारीपन, भूख न लगना, कब्ज, पेट दर्द आदि बीमारियां प्रायः देखने सुनने को मिल ही जाती हैं।

      स्वास्थ्य के दृष्टिकोण से मौसम के अनुसार अपने आहार- विहार में बदलाव लाना आवश्यक होता है। इससे हम इन विभिन्न प्रकार की मौसमी बीमारियों से बच सकते हैं।

      क्योंकि यही मौसम होता है जब हमारे सामने बहुत सारे निमंत्रण भी होते हैं जहां हमें भाँति-भाँति के व्यंजन उपलब्ध कराए जाते हैं और हम अपने मन को मना नहीं पाते। सामाजिकता बढ़ने के साथ ही कई बार 1 दिन में हमारे सामने कई कई निमंत्रण होते हैं और हम कुछ ना कुछ हर जगह भोजन के रूप में ग्रहण ही कर लेते हैं। यदि स्वस्थ रहना है तो हमें अपनी इस आदत में भी सुधार करना होगा

     इस मौसम में हमें प्रयास करना चाहिए कि अधिक से अधिक तरल पदार्थों का सेवन करें। नमक चीनी पानी नींबू का मिश्रण बनाकर उसका उपयोग नियमित करें। भोजन कम से कम ग्रहण करें। खाली पेट भी न रहें। इस समय हमारे घरों में नया गेहूं होता है नए गेहूं के आटे से बनी रोटियां हमारे पेट में विकार उत्पन्न कर सकती हैं। पुराना गेहूं, जौ, मक्का,बाजरा आदि स्वास्थ्य के लिए अनुकूल रहेगा। प्रातः काल अंकुरित चना, भिगोया हुआ किशमिश व अँजीर लेना स्वास्थ्य वर्धक होगा।

 मूंग, मसूर, अरहर एवं चने की दालें तथा मूली, गाजर, चौलाई, पालक,मेथी, परवल, धनिया, अदरक आदि का प्रयोग उचित है। आप मख्खन लगी रोटी भी ले सकते हैं।सलाद को अपने भोजन में अवश्य सम्मिलित करें।

 चिकनाई युक्त भारी, गरिष्ठ भोजन,खट्टे- मीठे पदार्थ ,चाट -पकौड़े, उड़द से बने पदार्थ,नये गेहूं का आटा,नया गुड़, भैंस का दूध आदि नुकसान पहुंचा सकता है ।जल इस समय अधिक मात्रा में पीना चाहिए। यदि शरीर में सर्दी या कफ की समस्या हो तो जल में थोडा़ सा अदरक, काली मिर्च और पीपल डालकर उबाल लेना चाहिए और शीतगर्म होने के बाद थोड़ा सा शहद मिलाकर पीना चाहिए। यदि यह न संभव हो तो केवल गुनगुना पानी भी पी सकते हैं।

 सूर्योदय के पूर्व जागरण, टहलना ,हल्के व्यायाम,योगासन एवं शरीर की मालिश आवश्यक है।

दिन में सोने या देर तक बैठे रहने से भी बचें। दिन में सोने से कफ में वृद्धि होती है।रात के समय हल्के भोजन लें।तेज धूप में न निकलें। आवश्यक होने पर अपने सिर को ढककर ही निकलें।कहीं धूप से आने पर तुरंत पानी न पिएं। तुरंत स्नान न करें। बाजार में बिकने वाले विभिन्न ठंडे भी नुकसान ही पहुंचाते हैं। ध्यान रहे 'सौ दवा न एक परहेज ' सावधानी ही सुरक्षा है। सावधान रहें, सुरक्षित रहें।

      विशेष आवश्यक होने पर अपने चिकित्सक से परामर्श अवश्य ही करें।

                                           केशव शुक्ल