अमृतवाणी

अमृतवाणी

अमृतवाणी

अमृतवाणी 

आकारश्छाद्यमानोsपि न शक्यो विनिगूहितुम्।
बलाद्धि विवृणोत्येव भावमन्तर्गतं नृणाम्।।
(वाल्मीकि रामायण, युद्धकाण्ड - १७/६४)

अर्थात - कोई अपने आकार को कितना भी छिपाए, उसके भीतर का भाव कभी छिप नही सकता। बाहर का आकार पुरुषों के आन्तरिक भाव को बलात् प्रकट कर देता है।