अमृतवाणी

अमृतवाणी

अमृतवाणी

अमृतवाणी*

*वैरं लक्ष्म्या: सरस्वत्या:*
*नैतत्प्रामाणिकं वचम्।*
*ज्ञानधर्मभृतो वश्या*
*लक्ष्मी: न जडरागिणी ।।*
(अर्हद्गीता - ०९/१३)

अर्थात - लक्ष्मी और सरस्वती का वैर होता है, यह कहना प्रामाणिक नहीं है, क्योंकि लक्ष्मी ज्ञानवान् एवं धार्मिक व्यक्ति के वश में ही होती है मूर्ख से लक्ष्मी का निरन्तर लगाव नहीं होता है‌।