अमृतवाणी
अमृतवाणी
अमृतवाणी
अजातपक्षा इव मातरं खगा:
स्तन्यम् यथा वत्सतरा: क्षुधार्ता:।
प्रियं प्रियेव व्युषितम् विषण्णा
मनोऽरविंदाक्ष दिदृक्षते त्वाम्।।
(श्रीमद्भागवत - ०६/११/२६)
अर्थात् - जिस प्रकार पक्षियों के पंख रहित बच्चे माता के लिए, भूख से व्याकुल बछड़े दूध के लिए और प्रिय विरह में व्याकुल सुन्दरी अपने प्रियतम के लिए छटपटाती है, ठीक उसी प्रकार भक्त का हृदय भगवान् के दर्शन के लिए छटपटाता है।