भगवती श्रीदुर्गा की स्तुति

भगवती श्रीदुर्गा की स्तुति

भगवती श्रीदुर्गा की स्तुति

भगवती श्रीदुर्गा की स्तुति 

तामग्निवर्णां तपसा ज्वलन्तीं 
वैरोचनीं कर्मफलेषु जुष्टाम्। 
दुर्गां देवीं शरणमहं  प्रपद्ये  
सुतरसि तरसे नमः।।
देवीं वाचमजनयन्त देवास्तां
 विश्वरूपाः पशवो वदन्ति।
सा नो मन्द्रेषमूर्जं दुहाना
 धेनुर्वागस्मानुपसुष्टुतैतु॥ 
(श्रीमद्देवीभा०स्क०७,अ०३१/४५-४६)

अर्थ- उन अग्निसदृश वर्णवाली, दिव्य ज्ञानसे जीव जगत् के सहित निखिल भुवन को प्रकाशित करने वाली , दीप्तिमयी, कर्मफलोंकी प्राप्ति हेतु सेवन की जानेवाली भगवती दुर्गा की हम शरण  ग्रहण करते हैं।
 पार करनेयोग्य, संसार-सागरसे तरनेके लिये उन भगवतीको नमस्कार है।
विश्वरूप देवताओंने जिस वैखरी वाणीको उत्पन्न किया, उसीको अनेक प्रकारके प्राणी बोलते हैं। 
वे कामधेनुतुल्य, आनन्ददायिनी और अन्न तथा बल देनेवाली वाग्रूपिणी भगवती उत्तम स्तुतिसे संतुष्ट होकर हमारे समीप पधारें।