अमृतवाणी

अमृतवाणी

अमृतवाणी

अमृतवाणी

राष्ट्रे पश्यति आत्मानं राष्ट्रं चात्मनि पश्यति।
राष्ट्रायैव च कर्माणि मम यो वेत्ति तत्त्वत:।।
राष्ट्रभक्त: स पुण्यात्मा राष्ट्रात्मा स नर: शुचि:।
यस्माज्जीवति लोकोऽयं स राष्ट्र: केन मीयते।।
          (शान्तेयशतकम्)

अर्थ- जो व्यक्ति राष्ट्र में अपने आप को और अपने में राष्ट्र को देखता है तथा भली-भांति यह जानता है कि मेरे सभी सत्कर्म राष्ट्र के लिये हैं, वह व्यक्ति राष्ट्रभक्त, पुण्यात्मा व पवित्र है। क्योंकि राष्ट्र की समृद्धि तथा तेज से ही लोक में लोग सुखी जीवन जीते हैं, अतः राष्ट्र की महानता भला कैसे मापी सकती है? अर्थात् राष्ट्र की सत्ता (शक्ति) अतुलनीय और अनुपमेय है।