तीर्थेषु माचरेत्पापं कन्योद्वाहे गुरोर्मुखे। कृतानामत्र पापानां प्रायश्चित्तं न विद्यते।।
तीर्थेषु माचरेत्पापं कन्योद्वाहे गुरोर्मुखे। कृतानामत्र पापानां प्रायश्चित्तं न विद्यते।।
तीर्थेषु माचरेत्पापं कन्योद्वाहे गुरोर्मुखे।
कृतानामत्र पापानां प्रायश्चित्तं न विद्यते।।
अर्थ:- तीर्थस्थलों में, कन्या के विवाह में तथा गुरु के सम्मुख भूलकर भी पाप कर्म न करें! क्योंकि उपर्युक्त स्थलों पर किये गये पाप कर्म का कोई प्रायश्चित्त नहीं है। अर्थात् इन स्थलों पर किये गये पाप का भोग भोगना ही पड़ता है।
प्रवीणमणित्रिपाठी "शान्तेय" ✍️