देवी मंत्रों के पुरश्चरण के आरंभ की विधि।।

देवी मंत्रों के पुरश्चरण के आरंभ की विधि।।

देवी मंत्रों के पुरश्चरण के आरंभ की विधि।।

 आचार्य पं0 धीरेन्द्र मनीषी।

 नवरात्रि में देवी मंत्रों के जप का विशेष फल कहा गया है। यदि इस काल मे मंत्रों का पुरश्चरण कर दिया जाय तो भगवती प्रसन्न होकर असीमित आशीर्वाद देती हैं। इसे आरम्भ करने की विधि यहां अधोलिखित है। प्रातःकाल नित्यक्रिया से निवृत्त होकर चन्द्र- तारादि बल से युक्त शुभ मुहूर्त में अपनी कामना के अनुसार प्रतिज्ञा सङ्कल्प करके गणपति पूजनादि से लेकर नान्दीमुख श्राद्धपर्यन्त कृत्य करके यदि ब्राह्मण द्वारा जप कराना हो तो जापकों का वरण करे। फिर जपस्थान में आकर कूर्मशोधन कर अपने आसन पर पूर्व की ओर मुख करके मूल मन्त्र से आचमन कर प्राणायाम कर देश- काल का सङ्कीर्तन करके 'अमुककामनया मन्त्रसिद्धिद्वारा श्रीभगवतीप्रसन्नतार्थं देव्या अमुकमन्त्रजपं करिष्ये। तदङ्गत्वेन भूतशुद्धिमन्तर्मातृकाबहिर्मातृकान्यासं निवृत्त्यादिकलान्यासं च करिष्ये' इत्यादि पढ़कर सङ्कल्प करके विधि से भूतशुद्धि, अन्तर्मातृकान्यास, कलामातृकान्यास करना चाहिये।

मातृकान्यास के विनियोग-हेतु पुस्तक में लिखित ' अस्य कलान्यासस्य प्रजापतिऋषि' इत्यादि कहकर विनियोग का जल पृथ्वी पर छोड़े। फिर लिखित 'ॐ प्रजापतिऋषये नमः शिरसि' इत्यादि पाँच मन्त्रों से ऋष्यादिन्यास क्रमशः शिर, मुख, हृदय, गुह्य तथा पाद में करे। फिर 'ॐ ॐ ॐ आं हृदयाय नमः' इत्यादि छः मन्त्रों से क्रमशः हृदय, शिर, शिखा, कवच, नेत्रत्रय तथा अस्त्राय फट् न्यास करे।

तदनन्तर 'शङ्खचक्राब्ज०' इत्यादि दो श्लोकों से देवी का ध्यान करे। फिर मूल में लिखित 'ॐ अं निवृत्त्यै नमः' इत्यादि ५१ मन्त्रों से क्रमशः ललाट, मुखवृत्त, दक्षिणनेत्र, वामनेत्र, दक्षिणकर्ण, वामकर्ण, दक्षिणनासापुट, वामनासापुट, दक्षकपोल, वामकपोल, ऊर्ध्वाष्ठ, अधरोष्ठ, ऊर्ध्वदन्तपङ्कि, अधोदन्तपङ्कि, जिह्ना, कण्ठ, दक्षबाहुमूल, वामबाहुमूल, दक्षिण कूर्पर आदि में मातृका-कलान्यास करना चाहिये। इस न्यास को देवी के सभी मन्त्रों में करना चाहिये। भगवती सबका कल्याण करें, इसी कामना के साथ! जय माता दी।

आचार्य पं0 धीरेन्द्र मनीषी।

निदेशक: काशिका ज्योतिष अनुसंधान केन्द्र, काशी।। मो0: 9450209581/ 8840966024