द्वितीयं ब्रह्मचारिणी
चैत्र नवरात्रि
द्वितीयं ब्रह्मचारिणी
दधानाकरपद्माभ्यामक्षमालाकमण्डलु।
देवी प्रसीदतु मयि ब्रह्मचारिण्यनुत्तमा ॥
चैत्र नवरात्रि के दूसरे दिन देवी ब्रह्मचारिणी की पूजा की जाती है। उन्हें संयम की देवी कहा जाता है। नवरात्रि के दूसरे दिन आराधना करने से साधक को तप, त्याग, वैराग्य, सदाचार, संयम की प्राप्ति होती है।
मां ब्रह्मचारिणी के दाहिने हाथ में अक्षमाला और बाएं हाथ में कमंडल है।
बह्मचारिणी नाम क्यों पड़ा ?
शास्त्रों के अनुसार माना जाता है कि मां दुर्गा ने पार्वती के रूप में पर्वतराज के घर पुत्री के रूप में जन्म लिया , और नारद के कहने पर पार्वती ने शिव को पति मानकर उन्हें पाने के लिए कठोर तपस्या की। हजारों वर्ष तपस्या करने के बाद इनका नाम तपश्चारिणी या ब्रह्मचारिणी पड़ा। नवरात्रि के दूसरे दिन को इसी तप को प्रतीक रूप में पूजा जाता है।
सार यह है कि, जीवन के कठिन संघर्षों में भी मन विचलित नहीं होना चाहिए। मां ब्रह्मचारिणी की आराधना करके जीवन में धन-समृद्धि, खुशहाली ला सकते है।
देवी ब्रह्मचारिणी की आराधना करने वाले साधक को विजय मिलती है। किसी कार्य में अपनी जीत सुनिश्चित करना चाहते हैं, तो आज के दिन आपको देवी ब्रह्मचारिणी के इस मंत्र का जप करना चाहिए ।
मंत्र इस प्रकार है - 'ओउम् ऐं ह्रीं क्लीं ब्रह्मचारिण्यै नम: ।
इस मंत्र का कम से कम एक माला, यानी 108 बार जप करना चाहिए। इससे विभिन्न कार्यों में जीत सुनिश्चित होगी।
देवी ब्रह्मचारिणी की आराधना करते समय हाथों में एक लाल पुष्प लेकर देवी का ध्यान करें । हाथ जोड़ते हुए प्रार्थना करते हुए मंत्रोच्चारण करें ।
ध्यान मंत्र -
वन्दे वांछित लाभायचन्द्रार्घकृतशेखराम् ।
जपमालाकमण्डलु धराब्रह्मचारिणी शुभाम् ॥
गौरवर्णा स्वाधिष्ठानस्थिता द्वितीय दुर्गा त्रिनेत्राम ।
धवल परिधाना ब्रह्मरूपा पुष्पालंकार भूषिताम् ॥
परम वंदना पल्लवराधरां कांत कपोला पीन ।
पयोधराम् कमनीया लावण्यं स्मेरमुखी निम्ननाभि नितम्बनीम् ॥
देवी को पंचामृत स्नान कराएं, अलग-अलग तरह के फूल,अक्षत, कुमकुम, सिन्दुर, अर्पित करें, और श्वेत सुगंधित पुष्प भी चढ़ाएं।
पूजा विधि -
मान्यताओं के अनुसार सबसे पहले जिन देवी-देवताओं, गणों और योगिनियों को आपने कलश में आमंत्रित किया है। उन्हें दूध, दही, घृत , शहद से स्नान कराएं।तत्पश्चात पुष्प , अक्षत, रोली, चंदन का भोग लगाएं।फिर पान, सुपारी और कुछ दक्षिणा रखकर पंडित को दान करें। पुनः हाथों में एक पुष्प लेकर प्रार्थना करते हुए बार-बार मंत्र का उच्चारण करें ।
मां ब्रह्मचारिणी को लाल रंग का ही फूल चढ़ाएं , कमल से बना हुआ माला पहनाएं, शक्कर का भोग लगाएं। ऐसा करने से मां जल्द ही प्रसन्न होती हैं ।
तदनन्तर भगवान शिव का पूजन करें और फिर ब्रह्मा जी के नाम से जल, पुष्प, अक्षत आदि हाथ में लेकर “ऊं ब्रह्मणे नम:” कहते हुए भूमि पर रखें ।
शुभम् भवतु
डॉ. ए. के. पाण्डेय
पुणे -7574885030