अमृतवाणी

अमृतवाणी

अमृत वाणी

वदन्ति सुधिय: लोके दुष्टाग्रेऽकिंचनो भव।
 न जाने ते कदा दुष्टा: करिष्यन्ति तवाहितम्।।

शुद्ध बुद्धि वाले विद्वान् लोग बताते हैं कि दुष्टों के सामने हमेशा  अकिंचन बन कर रहना चाहिए ।  क्योंकि दुर्बुद्धि दुष्ट कुपित होकर कब अहित कर देंगे! कोई निश्चित नहीं है!

 (शान्तेयशतकम्)

   प्रवीणमणित्रिपाठी"शान्तेय"