अमृतवाणी

अमृतवाणी

.

अमृतवाणी 

न विश्वसेत्बकध्याने न ज्ञाने चाति

 मानिनाम्।

ध्यानास्त्रेण बको हन्ति दुराचारैश्च

 मानिन:।      

(शान्तेयशतकम्)

भावार्थ- बगुले के ध्यान पर और अति अहंकारी महत्वाकांक्षी व्यक्तियो के ज्ञान पर कभी लट्टू नहीं होना चाहिए, अर्थात् उन पर विश्वास नहीं करना चाहिए। क्योंकि धीर गम्भीर बगुला अवसर मिलते ही ध्यानास्त्र के द्वारा मछली को सीधे ग्रहण कर जाता है और दुराग्रहों से ग्रसित दिखावटी विनम्रशील अतिमानी लोग अपने दुर्वचनों एवं दुराचरण द्वारा लोगों को आहत करते रहते हैं।   

प्रवीणमणित्रिपाठी"शान्तेय" 

.