त्रिगुणात्मिका भगवती प्रकृति का स्वरूप
त्रिगुणात्मिका भगवती प्रकृति का स्वरूप
त्रिगुणात्मिका भगवती प्रकृति का स्वरूप
ॐनमश्चण्डिकायै,श्रीनारायण उवाच-
प्रकृतेर्लक्षणं वत्स को वा वक्तुं क्षमो भवेत्।
किञ्चित्तथापि वक्ष्यामि यच्छ्रुतं धर्मवक्त्रतः॥
प्रकृष्टवाचकः प्रश्च कृतिश्च सृष्टिवाचकः।
सृष्टौ प्रकृष्टा या देवी प्रकृतिः सा प्रकीर्तिता॥
गुणे सत्त्वे प्रकृष्टे च प्रशब्दो वर्तते श्रुतः।
मध्यमे रजसि कृश्च तिशब्दस्तमसि स्मृतः॥
त्रिगुणात्मस्वरूपा या सा च शक्तिसमन्विता।
प्रधाना सृष्टिकरणे प्रकृतिस्तेन कथ्यते॥
प्रथमे वर्तते प्रश्च कृतिश्च सृष्टिवाचकः।
सृष्टेरादौ च या देवी प्रकृतिः सा प्रकीर्तिता॥
(श्रीमद्देवी भा०,९स्क०, १अ०, ४-८)
अर्थ:- भगवान् श्रीनारायण श्री नारद जी से बोले- हे वत्स ! देवी प्रकृतिके सम्पूर्ण लक्षण कौन बता सकता है? फिर भी धर्मराजके मुखसे मैंने जो सुना है, उसे यत्किंचित् रूपसे बताता हूँ -
'प्र' अक्षर प्रकृष्टका वाचक है और
'कृति' से सृष्टिका बोध होता है। जो
देवी सृष्टिप्रक्रियामें प्रकृष्ट हैं, वे ही
प्रकृति कही गयी हैं। 'प्र' शब्द प्रकृष्ट
सत्त्वगुण, 'कृ' रजोगुण और 'ति'
शब्द तमोगुणका प्रतीक कहा गया
है। जो त्रिगुणात्मिका हैं, वे ही
सर्वशक्तिसे सम्पन्न होकर प्रधानरूपसे सृष्टिकार्यमें संलग्न रहती
हैं, अतः उन्हें 'प्रकृति' या 'प्रधान'
कहा जाता है।
प्रथमका बोधक 'प्र' और सृष्टिवाचक
'कृति' शब्दके संयोगसे सृष्टिके
प्रारम्भमें जो देवी विद्यमान रहती हैं,
उन्हें प्रकृति कहा गया है।