Sonbhadra: जगत कल्याण के लिए होता है भगवान का अवतार

Sonbhadra: जगत कल्याण के लिए होता है भगवान का अवतार

जगत कल्याण के लिए होता है भगवान का अवतार- बाला शास्त्री

सोनभद्र 
By - Amaresh Mishra 
श्री अनंतेश्वर महादेव मंदिर प्रांगण में चल रही श्रीमद् भागवत महापुराण के चतुर्थ दिवस कथा व्यास परम पूज्य पंडित बाला वेंकटेश शास्त्री जी ने भगवान श्री कृष्ण के जन्मोत्सव का बड़े ही धूमधाम से वर्णन किये इसके पूर्व भगवान के परम भक्त प्रहलाद जी के चरित्र का वर्णन करते हुए बताएं कि जिस समय हिरण्यकश्यप के अत्याचार से समस्त जनमानस प्रजा को पीड़ा होने लगी तब भगवान भक्त प्रहलाद को माध्यम बनाकर नरसिंह का स्वरूप धारण कर प्रकट हुए और हिरण्यकश्यप का उद्धार करके जनमानस का कल्याण किये आगे शास्त्री जी ने बताया कि भगवान किसी का वध नहीं करते उद्धार करते हैं।
एकहि बाण प्राण हरि लीन्हा।
दिन जानि कर निज पद दीन्हा।।
  कहते हैं हिरण्य कश्यप भगवान का शत्रु था फिर भी भगवान उसको अपना धाम प्रदान कर दिए भगवान का भजन चाहे मित्र भाव से करें या शत्रु भाव से करें प्रयास यह रहे कि भगवान का स्मरण चिंतन हमेशा बना रहे निश्चित ही भगवान अपने धाम में स्थान दे देंगे शास्त्री जी ने बताया कि इंसान प्रातः काल उठते ही 12 बार भगवान नरसिंह और भक्त प्रहलाद के नाम का स्मरण कर ले पूरा दिन ना तो कोई संकट आएगा और ना ही कोई समस्या इसके बाद शास्त्री जी ने वर्ण आश्रम धर्म का निरूपण करते हुए चारों आश्रमों में  सबसे श्रेष्ठ  गृहस्थ आश्रम को बतलाए क्योंकि अतिथि सत्कार सुंदर-सुंदर उत्सव मनाने का अवसर गृहस्थ में ही प्राप्त होता है भगवान भी जितनी बार आए हैं तो गृहस्थ में ही आए हैं चाहे दशरथ कौशल्या हो या फिर अदिति कश्यप हो या नंद यशोदा हो देवकी वासुदेव हो कर्दम देवहूती हो हर बार भगवान गृहस्थ आश्रम में ही आए हैं इसलिए सभी आश्रमों में सबसे श्रेष्ठ गृहस्थ आश्रम ही है लेकिन गृहस्थ आश्रम की सार्थकता तभी है जब शास्त्रों के बताए हुए मार्ग का अनुसरण करें चतुर्थ दिवस की कथा में समुद्र मंथन के प्रसंग का वर्णन करते हुए शास्त्री जी बताते हैं कि समुद्र मंथन का तात्पर्य अपने आप का मंथन करना समुद्र मंथन में सबसे पहले हलाहल नाम का विष निकला था इस प्रकार जब हम अपने आप का मंथन करेंगे तो हमारे अंदर से काम क्रोध बाहर आ जाएंगे जब हमारे अंदर के काम, क्रोध ,लोभ ,मोह ,मद ,मात्सर्य ,बाहर निकल जाएंगे तब हमारे हृदय मंडल में ही अमृत का प्राकट्य हो जाएगा और हमारा कल्याण हो जाएगा इसके बाद भगवान  वामन के प्रसंग  पर प्रकाश डालते हुए भगवान श्री राम जी की लीलाओं का वर्णन करते हुए अंत में भगवान श्री कृष्ण के जन्मोत्सव प्रसंग का बडे ही विस्तार से वर्णन किये एवं झांकी के माध्यम से भगवान श्री कृष्ण का प्रकटोत्सव बड़े ही धूमधाम से मनाया गया भजनों के स्वर लहरियों से समस्त श्रद्धालु श्रोताजन भाव में झूम झूम कर आनंद उत्सव मनाएं इस अवसर पर भारी संख्या में भक्तगण उपस्थित होकर आनंद उत्सव का लाभ लिए