अमृतवाणी

अमृतवाणी

अमृतवाणी

अमृतवाणी

अद्यैव कुरु यच्छ्रेय: वृद्ध: सन्किं करिष्यसि।
स्वगात्राण्यपि भाराय भवन्ति हि विपर्यये।।
(योगवासिष्ठ)

अर्थात - जो अपने कल्याण की बात है, उसे आज ही करना अच्छा है। वृद्धावस्था में तो अपने अंग भी भार जैसे हो जाते हैं।