अमृतवाणी
अमृतवाणी
नेतारो यदि गच्छन्ति
सदनेष्वसतामहो।
अतः परं किमाश्चर्यं लोके पश्यन्तु
बन्धव:।।
( शान्तेयशतकम्)
भावार्थ- दुर्जनों और अपराधियों के
कुकृत्य पर बनावटी संवेदना व्यक्त
करने वाले समाज के नेता यदि
अपराधियों का दु:ख बांटने उनके
घरों में जाते हैं, तो हे बन्धु जनों!
संसार में इससे बड़ा आश्चर्य और
क्या ही हो सकता है?
प्रवीणमणित्रिपाठी "शान्तेय"