अमृतवाणी
अमृतवाणी
अमृतवाणी
अकामस्य क्रिया काचित् दृश्यते नेह कर्हिचित्।
यद्यद्धि कुरुते किञ्चित्तत्तत्कामस्य चेष्टितम्।।
(मनुस्मृति - २/४)
अर्थात् - इस संसार में इच्छा के बिना किसी मनुष्य का कोई काम कभी भी दिखाई नहीं देता। सब इच्छा के कारण करता है।