भारतीय संस्कृति के कालजयी और यशस्वी उन्नायक हैं आदि गुरु शंकराचार्य - प्रो० वैद्यनाथ मिश्र 

हिन्दी भाषा में पत्र व्यवहार तथा बोलचाल में भोजपुरी भाषा का हो रहा प्रयोग

भारतीय संस्कृति के कालजयी और यशस्वी उन्नायक हैं आदि गुरु शंकराचार्य - प्रो० वैद्यनाथ मिश्र 

भारतीय संस्कृति के कालजयी और यशस्वी उन्नायक हैं आदि गुरु शंकराचार्य - प्रो० वैद्यनाथ मिश्र 

हिन्द भास्कर, आनन्दनगर-महराजगंज।

    लाल बहादुर शास्त्री स्मारक पी.जी. कॉलेज आनन्दनगर, महराजगंज में मंगलवार को भारतीय भाषा समिति शिक्षा मंत्रालय, भारत सरकार, नई दिल्ली द्वारा अनुदानित भारत की एकता और एकात्मकता में जगद्गुरु श्री शंकराचार्य का योगदान विषय पर व्याख्यानमाला का आयोजन किया गया ।

  कार्यक्रम का शुभारम्भ कार्यक्रम की अध्यक्षता कर रहे महाविद्यालय के प्रबंधक डॉ. बलराम भट्ट, मुख्य अतिथि जय प्रकाश विश्वविद्यालय, छपरा के संस्कृत विभाग के अध्यक्ष प्रो. बैद्य नाथ मिश्र, विशिष्ट अतिथि रामजी सहाय पी.जी.कॉलेज रुद्रपुर, देवरिया के प्राचार्य प्रो. बृजेश कुमार पाण्डेय द्वारा माँ सरस्वती के चित्र पर माल्यार्पण और दीप प्रज्ज्वलित करके किया ।

     अतिथियों का स्वागत महाविद्यालय के प्राचार्य डॉ. राम पाण्डेय द्वारा स्मृति चिह्न एवं अंगवस्त्र भेंट कर किया गया ।

       मुख्य वक्ता प्रो. बैद्य नाथ मिश्र ने कहा कि हिन्दू धर्म में मठों की परम्परा लाने का श्रेय आदिगुरु शंकराचार्य को जाता हैं,  उन्होंने चारों दिशाओं में चार मठों क्रमशः शृंगेरी, पुरी, द्वारिका एवं बद्रीनाथ में स्थापित किया l इसका उद्देश्य भारत को एकता की सूत्र में पिरोना था l उन्होंने बताया कि शंकराचार्य भारतीय संस्कृति के कालजयी और यशस्वी उन्नायक हैं l  इनके माता पिता शिव के उपासक थे l भगवान शिव ने वरदान से उन्हें गुणवान पुत्र प्राप्त हुआ, जिसका नाम शंकर रखा l शंकर 8 वर्ष की आयु में चारों वेदों के ज्ञाता तथा 9 वर्ष की आयु में शास्त्रार्थ में अन्य विद्वानों को पराजित किया l उन्होंने 32 वर्ष की अल्पायु में चार मठों की स्थापना करके भारत को एकता के सूत्र में पिरोने का कार्य किया l उन्होंने बताया कि ईश्वर एक हैं, वह हैं ब्रहम, ब्रहम को माया रूपी अज्ञानता का आवरण ढक लेता हैं, जिससे वह ईश्वर को पहचान नहीं पाता लेकिन जैसे ही माया रूपी अज्ञानता का आवरण हट जाता हैं, वह ब्रहम को पहचान लेता हैं l इसीलिए उन्होंने कहा कि 'ब्रहम सत्य, जगत मिथ्या' l यानि ईश्वर एक ही  हैं, वह परब्रह्म हैं l जैसे अलग-अलग रंग के फूल को जब माला बनाया जाता है, उसी प्रकार मनुष्य के विविध रंग-रूप, जाति, धर्म के होते हुए भी एक हैं, जिसका मूल एक ही हो वही एकात्मकता हैं l  8वीं सदी में संस्कृत का वर्चस्य होने पर भी उस समय पालि, प्राकृत भाषाओ का आम बोल चाल में प्रचलन में था l ठीक उसी प्रकार वर्तमान समय में हिन्दी भाषा में पत्र व्यवहार तथा बोलचाल में भोजपुरी भाषा का प्रयोग किया जा रहा हैं l यानि भाषायी विविधता में भी एकता स्थापित किया जा सकता हैं l

     प्रो. बृजेश कुमार मिश्र ने कहा कि वैदिक कालीन शिक्षा का मुख्य उद्देश्य मोक्ष की प्राप्ति हैं l मोक्ष ज्ञान प्राप्त करने पर मिलता हैं l ज्ञान प्राप्ति के लिए हमें वेद, उपनिषद, गीता एवं प्राचीन साहित्य का ज्ञान प्राप्त करना अनिवार्य हैंl इसलिए भारत सरकार ने राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 में भारतीय ज्ञान परम्परा से जुड़ने की बात कही हैं l यदि हम अपने जड़ो से जुड़ेंगे, तभी हम अपनी संस्कृति को जानेंगे l हमारी संस्कृति हमारा पहचान बनेगी l

     कार्यक्रम की अध्यक्षता कर रहें प्रबंधक डॉ. बलराम  भट्ट ने कहा कि यह व्याख्यान   विद्यार्थियों को अपनी संस्कृति एवं भारतीय ज्ञान परम्परा से जोड़ने में सहायक होगा l

   इस अवसर पर प्रो. किरन सिंह, डाॅ प्रीति यादव, डाॅ अनिल मिश्र, डाॅ मनोज कुमार, डाॅ बाल गोविन्द मौर्य, डाॅ चन्द्र प्रकाश, डाॅ जितेंद्र प्रसाद, फैजान अशरफ, डाॅ उमाशंकर शुक्ल, डाॅ महीप पाण्डेय, डाॅ वैभव मणि त्रिपाठी, डाॅ सोनी कुमारी, डाॅ अर्चना दीक्षित, भगीरथी भट्ट, धर्मेन्द्र सिंह, आशीष सिंह,राकेश कुमार तथा शोधार्थी, स्नातकोत्तर एवं स्नातक कक्षाओं के विद्यार्थियों ने भाग लिया।