कभी न करें सत्कर्मों का परित्याग - श्रीलक्ष्मीप्रपन्न जीयर स्वामी

लोग प्रश्न करते हैं कि ईश्वर के साहचर्य में होनेवाली आनंदानुभूतियों का अनुभव उनसे दूर रहकर कैसे संभव है।

कभी न करें सत्कर्मों का परित्याग - श्रीलक्ष्मीप्रपन्न जीयर स्वामी
कभी न करें सत्कर्मों का परित्याग - श्रीलक्ष्मीप्रपन्न जीयर स्वामी

व्यक्ति के जीवन में अनुकूलता और प्रतिकूलता का आधार कर्म है, कभी न करें सत्कर्मों का परित्याग - श्रीलक्ष्मीप्रपन्न जीयर स्वामी

चांद प्रखंड के शिव गांव में आयोजित श्रीलक्ष्मीनारायण महायज्ञ में  श्रद्धालुओं को संबोधित करते हुए श्रीवैष्णव परिव्राजक संत श्रीलक्ष्मीप्रपन्न जीयर स्वामी जी महाराज ने कहा कि काल हीं जीवन में अनुकूलता और प्रतिकूलता का आधार है। काल का आधार हैं कर्म इसलिए व्यक्ति को जीवन में कभी भी सत्कर्मों का परित्याग नहींं करना चाहिए।
स्वामी जी ने कहा कि जिज्ञासा अत्यंत आवश्यक है। जिज्ञासा से हीं हमारे वेदांत और दर्शन का प्रारंभ है। लेकिन संशय और परीक्षा नहीं लेनी चाहिए।

उन्होंने कहा कि यदि मां सती ने जिज्ञासा की होती तो भगवान शंकर उनका समाधान कर देते। वे संशय कर बैठीं जिससे अनर्थ हो गया। प्रश्न होने चाहिएं, प्रश्न से हीं सृष्टि का आरंभ हुआ। ब्रह्मा जी जब प्रकट हुए तो उन्होंने स्वयं से प्रश्न किया- मैं क्या हूं, कौन हूं, मुझे क्या करना चाहिए। इस चिंतन में उन्हें आत्मज्ञान हुआ और सृष्टि की रचना शुरू हुई।

स्वामी जी ने कहा कि प्रश्नों के समाधान के लिए हमें जीवन में उपदेष्टाओं की आवश्यकता पड़ती है। वे मात्र उपदेश नहीं देते बल्कि मन, मस्तिष्क में स्थित अस्वभाव और असहिष्णुता का शमन कर सत्यप्रकाश से आलोकित करते हैं।
लोग प्रश्न करते हैं कि ईश्वर के साहचर्य में होनेवाली आनंदानुभूतियों का अनुभव उनसे दूर रहकर कैसे संभव है। यही प्रश्न उद्धव जी ने भगवान श्रीकृष्ण से उनके महाप्रयाण के समय किया था। इसका प्रबल उदाहरण एकलव्य हैं। राज नियम के विरुद्ध होने के कारण गुरु द्रोणाचार्य एवं कृपाचार्य ने उन्हें धनुर्विद्या का प्रशिक्षण देने से मना कर दिया। एकलव्य ने हार नहींं मानी। उन्होंने गुरु की प्रतिमा बनाकर उनके प्रति श्रद्धा रखते हुए अभ्यास किया और श्रेष्ठ धनुर्धर बने।
स्वामी जी ने कहा कि कुछ लोग एकलव्य की कथा को द्वेष, बिलगाव और क्षोभ उत्पन्न करने के लिए करते हैं। वास्तविकता है कि गुरुओं ने कोई पक्षपात नहीं किया बल्कि राजधर्म का पालन किया। वे कुरुवंश के अधीन कार्यरत थे और राज नियमों का पालन उनकी बाध्यता थी। यही कारण है कि एकलव्य ने कभी भी गुरु के प्रति अनादर, आक्षेप के नकारात्मक भाव नहींं प्रकट किए और आजीवन श्रद्धावनत रहे।
अपने कथन पर बल देते हुए स्वामी जी ने बताया कि सरकार का बड़े से बड़ा अधिकारी कभी सरकारी आदेशों और नियमों का उल्लंघन नहीं कर सकता। ऐसा करने पर वह दंड का भागी होगा। वही स्थिति गुरु द्रोणाचार्य एवं कृपाचार्य की थी। वे राजधर्म के अधीन थे।
स्वामी जी ने कहा कि शास्त्रों के अध्ययन और अनुशीलन के बिना ऐसे प्रश्नों का समाधान संभव नहीं होगा।शास्त्रों में सभी जिज्ञासा और प्रश्नों का उचित समाधान मौजूद है।
स्वामी जी के प्रवचन के पूर्व जगद्गुरु रामानुजाचार्य श्रीमुक्तिनाथ स्वामी, जगद्गुरु रामानुजाचार्य श्रीशिवपूजन शास्त्री तथा श्री आनंद विहारी शास्त्री आदि संतों ने रामायण, श्रीमद्भागवत महापुराण एवं श्रीमद्भागवत गीता की कथाएं सुनायीं। मंच की व्यवस्था स्वामी जी के परमशिष्य प्रोफेसर श्याम सुंदर दूबे जी ने संभाली।

प्रवचन में आयोजक एवं प्रधान यजमान रिटायर्ड जज ओम प्रकाश पाण्डेय, पटना हाईकोर्ट में स्टैण्डिंग काउंसिल अरविंद नाथ पाण्डेय, रेडक्रास सचिव प्रसून कुमार मिश्र, अधिवक्ता जितेन्द्र उपाध्याय, डा. छोटेलाल शुक्ल, आनंद कुमार पाण्डेय, संगीता पाण्डेय, बचना मिश्र, शशि पाण्डेय, रामानुज मिश्र, मुखिया रामा सिंह ,हरेराम ओझा,अरविंद सिंह ,नचक उपाध्याय डॉ मोहन तिवारी एवं बुच्चु सिंह कुशवाहा सहित हजारों श्रद्धालु-भक्त उपस्थित थे।