अमृतवाणी

अमृतवाणी

रङ्कं करोति राजानं राजानं रङ्कमेव च।

धनिनं निर्धनं चैव निर्धनं धनिनं विधिः।।

(चाणक्यनीति)

अर्थात - भाग्य (पूर्व में किया गया कर्म) रंक को राजा और राजा को रंक बना देता है। धनी को निर्धन तथा निर्धन को धनी बना देता है।