पुस्तक समीक्षा -प्रतिभा गुप्ता की पुस्तक 'संवेदना से संवाद'

पुस्तक समीक्षा -प्रतिभा गुप्ता की पुस्तक 'संवेदना से संवाद'

'संवेदना से संवाद' के एक वर्ष पूर्ण होने पर 

- उदय भान सिन्हा 

कवयित्री श्रीमती प्रतिभा गुप्ता की पुस्तक 'संवेदना से संवाद' अपने लोकार्पण तिथि से एक वर्ष पूर्ण कर लिया है। इसके लिए कवयित्री को हार्दिक शुभकामनाएँ। ख्यातिलब्ध महनीय साहित्यिक मनीषीगण के कर-कमलों द्वारा लोकार्पित यह पुस्तक अब तक असंख्य सुधी पाठकगण के मानस पटल पर अंकित हो चुका होगा जिनमें मैं स्वयं भी शामिल हूँ। इस पुस्तक को मैंने पूरा पढ़ा और अपने सीमित ज्ञान एवं बुद्धि के अनुसार जो मैं समझ सका उसके अभिव्यक्ति की अपेक्षा कवयित्री को भी होगी और मेरा साहित्यिक दायित्व भी है क्योंकि इस पुस्तक को इन्होंने मुझे अपने हस्ताक्षर के साथ व्यक्तिगत रूप से दिया था। 

          जैसा कि कविता के सम्बन्ध में छायावाद के स्तम्भ कवि पं. सुमित्रानंदन पंत की पंक्तियाँ हैं -

वियोगी होगा पहला कवि, 

आह से उपजा होगा गान। 

निकलकर ऑंखों से चुपचाप, 

बही होगी कविता अंजान।। 

वास्तव में संवेदना कविता के उद्गम का प्रथम और आवश्यक कारक है। एक संवेदनशील व्यक्ति ही अपने आसपास, समाज, राष्ट्र में व्याप्त विषमताओं से प्रभावित होता है और आत्मा की चीख उसे कलम उठाकर कविता लिखने को विवश कर देती है। जब प्रतिभा लिखती हैं -

बड़े शौक से आशियाना बनाया, 

सभी के लिए इक ठिकाना बनाया। 

उठी भीत आंगन में ऐसा लगा तब, 

बिखरने लगा जो घराना बनाया। 

***** ***** *****

नन्ही चिड़िया तुमने भी छज्जों पर आना छोड़ दिया

दमघोटू दुनिया से शायद आस लगाना छोड़ दिया। 

तब ऐसा महसूस होता है कि अन्तर्मन की घनीभूत संवेदना वस्तुस्थिति की आंच पाकर पिघल रही है और द्रवीभूत होकर मसि के रूप में कागज़ पर अंकित हो रही है। 

          कवयित्री प्रतिभा की कविताओं की भावभूमि घर, परिवार, पड़ोस, रिश्तेदार, समाज, खेत खलिहान, नदी, ताल तलैया, पेड़ पौधे, गौरैया आदि अपने इर्दगिर्द दिखाई देने वाली चीजें और उनसे‌ सम्बंधित घटनाएं परिघटनाए हैं। यह अपनी कविताओं में न तो आसमान के पार झांकती हैं न समुद्र की गहराइयों में गोते लगाती हैं और न ही प्यार के कल्पनाओं की दुनिया में ले जाती हैं। मानवता के धरातल पर टिक कर इनकी कविताएँ स्वयं से तथा अन्य से भी संवाद करती दिखती हैं। वास्तव में कविता होती भी है एक सहृदय व्यक्ति की अपनी संवेदनाओं के साथ भावुकतापूर्ण संवाद। प्रतिभा जी के इस कविता संग्रह के तीन भाग हैं; पहला ग़ज़ल संग्रह दूसरा गीत संग्रह एवं अन्त में कुछ मुक्तक। जैसा कि ग़ज़ल के बारे में एक अवधारणा रही है कि ग़ज़ल उर्दू अदब की एक विशिष्ट काव्य विधा है, उर्दू का पर्याप्त ज्ञान न होने के कारण मुझे ग़ज़ल का बहुत ही अल्प ज्ञान है। हालांकि, दुष्यन्त कुमार एवं उनके अनुयायी तमाम ग़ज़लकारों द्वारा हिंदी के तत्सम शब्दों के साथ भी बहुत सी ग़ज़लें लिखी गई हैं। प्रतिभा जी की ग़ज़लें भी लगभग उसी श्रेणी की हैं जो बोधगम्य एवं सुग्राही हैं। क़ाफ़िया रदीफ़ पर टिप्पणी करने में मैं सक्षम नहीं हूँ। जहाँ तक गीतों का प्रश्न है, गेयता उसकी पहली और ज़रूरी विशेषता होती है। उसके गायन में निर्बाध प्रवाह होना चाहिए। इस संग्रह के अधिकांश गीत इस कसौटी पर खरी उतरती हैं किन्तु कुछ गीतों में कुछ शब्दों के परिवर्तन अथवा पुनर्विन्यास द्वारा प्रवाह की बाधा को दूर किया जा सकता है। सारे मुक्तक बहुत ही सुन्दर सुग्राही, सारगर्भित एवं उद्धरणीय हैं। 

           कवयित्री की रचना शैली अति सरल एवं सहज संप्रेषणीय है। इनकी कविताओं की भाषा किताबी कम और आमजन के बीच बोली जाने वाली अधिक है। प्रभावशाली एवं सफल कविता वही है जो कवि के अन्तस्तल से निकल कर पाठक के हृदय तक बिना किसी मानसिक व्यायाम के पहुँच जाए। इस संग्रह की कविताओं में जिन अलंकारों को कवयित्री अनायास ही समाविष्ट कर लेने में समर्थ हुयी हैं वे कविताओं को उत्कृष्टता प्रदान करने में भरपूर सहायक हुए हैं। 

प्रीति की थाल में दीप हो आस का, 

लाज के वस्त्र हों रंग विश्वास का। 

***** ***** *****

प्रेम की अभिव्यक्ति में संवाद इतना ही रहा। 

मौन ने ही सुन लिया है मौन ने जो भी कहा। 

काव्य सौष्ठव की दृष्टि से ग़ज़लों और गीतों में सम्पूर्ण भाव बोध, समसामयिक संघर्ष, चेतना एवं आमजन के अस्तित्व संघर्ष की अभिव्यक्ति हुई है। प्रतिभा जी की कविताओं में स्वाभाविक रूप से स्त्री विमर्श भी कई स्थानों पर देखने को मिला किन्तु इन्होंने स्त्री को कहीं निरीह, शोषित भयभीत एवं निराशा में डूबी नहीं होने दिया जैसा कि नारीवादियों के स्त्री विमर्श में पुरुषों के शोषण से विद्रुपतापूर्ण जीवन व्यतीत करने को विवश नारी को दिखाया जाता है। कवयित्री की नारी सरल, सहनशील, घर परिवार समाज और राष्ट्र के प्रति दायित्वबोध से परिपूर्ण, सशक्त एवं आशावादी है। इनकी नारी आवश्यकता पड़ने पर झांसी की रानी की तरह तलवार उठा लेने की हौसला रखती है। 

          लिखने को तो इस संग्रह में बहुत कुछ है किन्तु अपने उद्गारों को अब विराम देना उचित समझता हूँ तथा अन्त में, मैं पुनः एक बार कवयित्री को उनके इन उत्कृष्ट रचनाओं के लिए बधाई और पुस्तक के प्रकाशन के प्रथम वर्षगाँठ की शुभकामनायें देता हूँ। इस पुस्तक के पाठकगण भी बधाई के पात्र हैं जिन्हें आज की कविता के निराशावादी दौर में कुछ उत्कृष्ट सकारात्मकता से भरी कविताएँ पढ़ने को मिलीं। प्रतिभा जी एक कुशल कवयित्री हैं अतः इनके अन्दर बहुत कुछ काव्य जगत को दे सकने का सामर्थ्य है। प्रतिभा की प्रतिभा का मैं व्यक्तिगत रूप से कायल हूँ अतः भविष्य में और इसी तरह के उत्तम एवं स्तरीय काव्य संग्रहों के प्रकाशन की उनसे अपेक्षा रखता हूँ। 

                              उदय भान सिन्हा

              (पूर्व अधिकारी, भारतीय राजस्व सेवा) 

                               गंगानगर, गोरखपुर