अमृत वाणी

May 31, 2024 - 05:16
May 31, 2024 - 07:57
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अमृत वाणी

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 अस्ति मौनमलंकार: धृतिरेव बलं सताम्।

उपकारस्तु विज्ञानां प्रशस्त्यस्ति महीतले।।

 तत्त्वदर्शनमाख्याति विद्वत्वं तु नृणामहो !

 विद्वत्तावरणे पापाचारोऽक्षम्यस्त्वितीरित:।।

                          (शान्तेयशतकम्)

भावार्थ- विद्वत्ता के आवरण में लपेटकर किया गया अपराध क्षमा योग्य नहीं होता है। विद्वत्ता का आभूषण है मौन, विद्वत्ता की शक्ति है धैर्य, विद्वत्ता का सूचक है तत्त्वदर्शन तथा विद्वत्ता की प्रशस्ति है उपकार !  

   प्रवीणमणित्रिपाठी "शान्तेय:

       

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