उत्तम जीवन के लिए तन और मन का स्वस्थ होना जरूरी

◆उत्तम पीढ़ी के लिए प्रथम गर्भाधान संस्कार का विधिवत पालन करना चाहिए
◆भागवत कथाकार आचार्य ब्रह्मानन्द शुक्ल ने अभिमन्यु, प्रह्लाद एवं शुकदेव का दिया उदाहरण
◆डॉ भवदेव पाण्डेय संस्थान में भागवत सप्ताह के दूसरे दिन उमड़ी भीड़
हिन्द भास्कर
मिर्जापुर।
जीवन को सार्थक बनाने के लिए तन-मन का स्वस्थ होना आवश्यक है। तन को बीमारियों से बचाने के लिए औषधियों का प्रयोग किया जाता है जबकि मन को स्वस्थ रखने के लिए सदशास्त्रों का अध्ययन एवं भगवान के नाम को स्मरण आवश्यक है।
उक्त उद्गार नगर के तिवराने टोला स्थित डॉ भवदेव पाण्डेय शोध संस्थान में चल रहे श्रीमद्भागवत सप्ताह के दूसरे दिन प्रवचन करते हुए आचार्य डॉ ब्रह्मानन्द शुक्ल ने व्यक्त किया। उन्होंने कहा कि मन यदि नियंत्रण में है तो वह जीवन को उच्चता की ओर ले जाता है जबकि निम्नता की ओर जाने पर दानवी प्रवृत्ति का हो जाता है।
मन की तुलना पानी से करते हुए डॉ शुक्ल ने कहा कि जिस तरह पानी सदैव नीचे की ओर गिरता है, ठीक वैसे मन हमेशा नीचे की ओर भागता है। नीचे भागने पर पापकर्म होते हैं, जिसे करने में आनन्द तो बहुत आता है लेकिन उसका परिणाम कष्टदायक होता है। डॉक्टर शुक्ल ने कहा कि पानी को ऊपर की ओर ले जाने के लिए जतन करना पड़ता है और यंत्रों (मशीन) का सहारा लेना पड़ता है। डॉ शुक्ल ने कहा कि ऐसे ही ईश्वरी-आह्लाद के लिए भजन, कीर्तन, प्रभु स्मरण, नाम-जप आदि का सहारा लेना चाहिए।
कथा के दौरान आचार्य डॉ शुक्ल ने भगवान के वाराह अवतार सहित देवताओं एवं पौराणिक पात्रों की चर्चा की तथा कहा कि मनु-शतरूपा से सृष्टि की शुरुआत हुई। डॉक्टर शुक्ल ने कहा हमारे ऋषियों ने उत्तम संतान की उत्पत्ति के लिए प्रथम संस्कार गर्भाधान संस्कार को बहुत महत्वपूर्ण बताया और कहा कि जैसे मकान की नींव मजबूत रखी जाती है, उसी तरह संतान उत्पत्ति की भी नींव मजबूत होनी चाहिए। इससे उत्तम पीढ़ी जन्म लेती है। इस संबन्ध में उन्होंने अभिमन्यु, प्रह्लाद एवं शुकदेव का नाम लिया।
संगीतमयी कथा में भारी संख्या में नर-नारी उपस्थित थी। महाराज जी का स्वागत रेलवे, प्रयागराज के राजभाषा अधिकारी यथार्थ पाण्डेय ने किया।
What's Your Reaction?






