अग्नि है पुरोहित, न कटेगा न जलेगा न मिटेगा आचार्य प्रमोद दुबे
पुरोहित शब्द अर्थात पद जनतंत्र में बाधक प्रतीत होता है, पुरोहित अत्यल्प संख्यक है, संख्या/ मात्रा की दृष्टि से हटाइए। गुण के कारण पुरोहित पद नहीं हटेगा।
जो व्यक्ति स्वयं जाग्रत नहीं है,वह राष्ट्र कैसे जगाएगा ?
और जो अहर्निश जाग्रत है उसे कैसे सुलाइएगा?
पुरोहित हटाने से हट नहीं जाता, काटने से कट नहीं जाता। यह वैदिक पद है।
गाजी ने पुरोहित काटा, सेंट जैबियर ने पुरोहित काटा, काँग्रेस ने मंदिर की आय काटकर पुरोहित काटा, कम्युनिस्ट ने पुराण पंथी बताकर पुरोहित काटा। हिन्दू एक करने केलिए संगठन ने पुरोहित काटा।
वोट पाने के लिए किस्म- किस्म के नेताओं ने पुरोहित काटा।
सबके सब नाशकृत्य जड़ बुद्धि हैं।
वास्तविक पुरोहित काट तो पाए नहीं और न काट पाओगे।
नअग्नि काट पाओगे , न सूर्य बुझा पाओगे। यही जागते और जगाते हैं।
जागते सब हैं, पर अपनी अपनी कामनाओं में जगते हैं। कोई राज में, कोई साज में, कोई दाम में, कोई काम में।
विरला कोई राम में जागता है। राम में जागने वाले को लोग जान लें तो उसे पीट देते हैं।
मैं अपना अनुभव कह रहा हूँ। किसी से उधार लेकर नहीं, भोगा हुआ यथार्थ ।
कोई भ्रम में न रहे, कर्ता न बने, पुरोहित हटाने से नहीं हटता, काटने नहीं काटता. यह आग है जिस घट में जैसा और जितना जलना है जलेगा।
नेतागिरी व्यवसाय है- उत्तम, मध्यम और अधम तीनों कोटि के व्यवसायी नेता होते हैं।
खजाना लूटने की इच्छा में मस्त नेता देखिए कैसे कुहरा चीर कर दौड़ लगाता है।
पुरोहित उच्चात्मों की कामना है।
मुझे जगाकर देश की राजधानी दिल्ली भेजा गया, रामकाज मन माहीं लेकर आ गया। बी एच यू से भारतीय ज्ञान की आचार्य परंपरा पर पीएच. डी. किया था, नौकरी नहीं, भारत राष्ट्र का पौरहित्य करने।
दिल्ली में मेरी कुल पहचान नहीं थी, साउथ एवेन्यू में रहने के दिनों मेरा जनेऊ टूट गया था मैं उदास बैठा हुआ। एक दक्षिण भारतीय व्यक्ति ने कारण पूछा, मैंने बताया।
वह बड़ी तेजी अपने आवास पर गया, जनेऊ लाया, उसने बताया, इसमें नौ गांठें हैं। मुझे प्रसन्नता हुई और उसने जाना- कि मैं ब्राह्मण हूँ।
मैं किसी से बताने नहीं गया, लोग जानते गए।
किस्म किस्म के राक्षस मिले, जिनके मन के कोने अँतरे कहीं राम नहीं थे, कवनों राज के लिए राम राम कर रहा था, कवनों दाम के लिए राम राम कर रहा था।
पांचजन्य का क्लेश देखा, साउथ एवेन्यू संत्रास।
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