राजनीतिक अराजकता की नाकाम कोशिशें ।
राजनीतिक अराजकता की नाकाम कोशिशें ।

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भोलानाथ मिश्र
राजनीतिक समीक्षक
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" ये न मेरे बस में है , न तेरे बस में है ,
राजनीति तो एक चंचला है , आज
इसकी तो कल उसकी है "। किसी
कवि की कही हुई यह बात 2025
के राजनीतिक माहौल की जमीनी
हकीकत बया करती प्रतीत हो रही
है । दक्षिण एशिया के कई देशों में राजनीतिक अराजकता के कारण सत्ता बदली है। अमेरिका का डीप स्टेट और अन्य विदेशी शक्तियां
निर्वाचित सरकारों को अपनी मर्जी के मुताबिक अस्थिर करने ने जुटी हुई हैं। जिन _ जिन देशों में
सरकार के विरुद्ध जन आंदोलन का तेवर_ कलेवर अराजकता के रंग में सराबोर दिखाई दिया उसके पीछे
तमाम शक्तियों के हाथ होने से इनकार नहीं किया जा सकता । इन सभी देशों में संवैधानिक संस्थाओं पर सवाल उठाए जा रहे थे । इसी तरह का वातावरण 5 साल पूर्व
अमेरिका में उस समय बना था जब
डोनाल्ड ट्रंप दूसरे कार्यकाल के लिए
राष्ट्रपति पद का चुनाव हार गए थे ।
ट्रंप के समर्थकों ने उत्पात मचाया
था । इसके लिए ट्रंप पर मुकदमा भी
चला था । भारत में भी संवैधानिक
संस्थाओं पर सवाल खड़े किए जा रहे है । जनता को सड़कों पर उतरने
के लिए कहा जा रहा है । वोट चोर
गद्दी छोड़ , मताधिकार बचाओ यात्रा , मतदाता सूची और चुनाव
आयोग की निष्पक्षता को लेकर
तरफ तरह के आक्रामक सवाल
उठाए जा रहे है । मामला सुप्रीम कोर्ट तक में है ।
संयोग या प्रयोग
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2014 में जब पहलीबार कोई गैर कांग्रेसी नेता अपनी पार्टी के दम पर पूर्ण बहुमत 282 सीट के साथ प्रधानमंत्री बना तो विपक्ष इसे तीर
तुक्का मानकर प्रलाप करता रहा ।
कुछ अपशब्दों के आदान प्रदान
के अतिरिक्त वोटिंग मशीन पर भी
ठीकरा फोड़ा गया । 2019 में लोकसभा चुनाव परिणाम का
अकड़ा 303 सीट तक अकेले
बीजेपी के पक्ष में आया तो वोटिंग
मशीन निशाने पर आ गई थी । चुनाव आयोग नेखुली चुनौती दी कि
ईवीएम को हैक करके दिखाए । कोई सामने नहीं आया । 2024 का
लोकसभा चुनाव आया तो संविधान की प्रति हाथ में लेकर प्रचार किया गया कि संविधान ख़तरे में है । अनुसूचित जाति , जन जाति
पिछड़ों और अल्प संख्यकों को मिला आरक्षण समाप्त हो जाएगा ।
जनता को उकसाया गया । परिणाम
बीजेपी के 400 पार के नारे के विपरीत लोकसभा की 240 सीटों
पर सिमटना पड़ा। बावजूद इसके तेलगुदेशम , जनतादल यू , अपना दल समेत एनडीए के अन्य सहयोगियों के साथ केंद्र में लगातार
तीसरी बार नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में
सरकार बन गई । विधानसभा चुनाव
के समय विपक्ष को ढेर सारी उम्मीदें
थीं लेकिन चुनाव परिणाम विपक्षी
गठबंधन को घोर निराश में धकेल
दिया । हरियाणा , महाराष्ट्र , समेत
उत्तर प्रदेश विधानसभा के उप चुनाव से विरोधी सकते में आ गए ।
लगभग आठ महीने बाद चुनाव
आयोग को कठघरे में खड़ा कर
वोट चोर कुर्सी छोड़ का नारा बिहार
से शुरू हुआ । मतदाता सूची के पुनरीक्षण को लेकर सर्वोच्च न्यायालय तक सांकल खट खटाई
गई । अपेक्षित परिणाम नहीं मिला ।
अपशब्दों का आदान प्रदान , आरोप
प्रत्यारोप चरम तक पहुंच गया । संवैधानिक संस्थाओं पर सवाल खड़ा किए जा रहे है । केंद्र सरकार
को वोट चोरी से बनी सरकार बताकर जनता को भड़काने का काम किया जा रहा है । लोकसभा
में विपक्ष के नेता राहुल गांधी के तमाम ऐसे बयान सार्वजनिक हुए
है , जो चुनाव आयोग की निष्पक्षता
पर सवाल उठते हैं । अब प्रश्न यह
उठ रहा है कि क्या निर्वाचित सरकार
को विदेशी शक्तियां यहां के कुछ लोगों को अपना टूल कीट बना कर
अस्थिर करना चाह रही है । या फिर वोट की राजनीति के चलते राजनीतिक अराजकता से
सत्ता परिवर्तन का कुछ लोग ख्वाब
देख रहे हैं । यह संयोग है कि प्रयोग
जो इस समय विभिन्न क्षेत्रों में देखा
जा रहा है । नरेंद्र सरेंडर , ट्रंप के कहने पर सीज फायर , आपरेशन सिंदूर , लोकसभा में भ्रष्टाचार निवारण विधेयक, वक्फ बोर्ड संशोधन , मतदाता सूची पुनरीक्षण ,
जातिगत जनगणना , रोहंगिया , बांग्लादेशी घुस पैठिया , आदि मसले
को लेकर बयान बाजी लोकतंत्र के
मूल्यों के क्षरण के ऐसे उदाहरण है
जो दक्षिण एशिया में हो रहे राजनीतिक उठापटक को देखते हुए
चिंतित करने वाले हैं । फिलिस्तीन ,
हमास , इजराइल , यूक्रेन , रूस , अमेरिका और चीन को लेकर सत्ता
और विपक्ष के अलग अलग सुर हैं ।
विदेश नीति को लेकर सवाल खड़े
किए जा रहे हैं । पाकिस्तान में विपक्ष के कई नेताओं के बयान डोजियर में संयुक्त राष्ट्र संघ में पाकिस्तान सबूत के रूप में पेश
करता है । पाकिस्तानी समाचार पत्रों
में नेता प्रतिपक्ष के बयान सुर्खियों में
छपते है । लोकतंत्र खत्म हो गया ,
अर्थव्यवस्था मृत प्राय हो गई है ।
केंद्र की सरकार वोट चोरी से बनी
है । इस तरह का आरोप लगाकर
आंदोलन करना संयोग है या
प्रयोग ।
दक्षेश के देशों में अराजकता
के कारण सरकारें बदलती रही है ।
अफगानिस्तान में तालिबानी सरकार
अराजकता से ही आई है । लेकिन इसे नहीं भूलना चाहिए कि भारत
न तो अफगानिस्तान है , न श्रीलंका
न ही बंग्लादेश ही है । भारत की महान जनता 1952 से लेकर 2024 तक मताधिकार का प्रयोग
कर सत्ता बदलती रही है । 2014
से लेकर 2024 तक यही हुआ है ।
सत्ता बदलने या न बदलने का अधिकार 98 करोड़ मतदाताओं का
है । बिहार में , 2027 में यूपी में और
2029 में सरकार बनाने का अधिकार मतदाताओं को ही रहेगा ।
कुछ देशो की अराजकता के कारण
सरकारें अवश्य बदली है जैसे__- बांग्लादेश: शेख हसीना की निर्वाचित सरकार लोकतांत्रिक मूल्यों की कमी, आर्थिक मंदी और हिंसक छात्र आंदोलन के कारण सत्ता से बेदखल हो गई । श्रीलंका 2022 में बड़े पैमाने पर सरकार विरोधी विरोध प्रदर्शनों के कारण राष्ट्रपति गोटबाया राजपक्षे को अपना पद त्यागना पड़ा और देश छोड़ना पड़ा । मालदीव: 2024 में राष्ट्रपति मोहम्मद मुइज्जू अप्रत्याशित रूप से विजयी हुए, जिससे भारत के साथ आपसी संबंधों में कुछ अंतर्विरोध उत्पन्न हुआ।मयांमार में सेना ने सत्ता पर कब्जा कर लिया और असैन्य नेताओं को हिरासत में ले लिया, जिससे व्यापक नागरिक अशांति फैल गई।पाकिस्तान 2022 में चुनी हुई सरकार सेना के प्रभाव के कारण सत्ता से बेदखल हो गई, जैसा कि अतीत में भी कई बार देखा गया है। नेपाल: सरकार में लगातार परिवर्तन के कारण नीतिगत स्थिरता प्रभावित हो रही है । इस समय नेपाल में सत्ता के खिलाफ आंदोलन
चल रहा है । भारत सरकार नेपाल
के घटनाक्रम पर नजर गड़ाए हुए
है । 9 सितम्बर , 2025 को हो रहे
उप राष्ट्रपति के चुनाव में एनडीए
और इंडिया गठबंध को मिले मतों
के आधार पर राजनीतिक विश्लेषक
सरकार की स्थिरता या अस्थिरता की समीक्षा करेंगे । इसी के आधार
पर गठबंधनों के साथी मित्रों की संख्या भी घटेगी बढ़ेगी । आगामी
तीन साल राजनीतिक दृष्टिकोण
से बेहद महत्वपूर्ण है । वजह 2027
में उत्तर प्रदेश के विधान का चुनाव
2029 के लोक सभा चुनाव का लिटमस टेस्ट होगा । बिहार के विधानसभा चुनाव से भी तस्वीर साफ हो जाएगी ।
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