आदि कवि महर्षि वाल्मीकि जयंती विशेषांक

आदि कवि महर्षि वाल्मीकि द्वारा रचित विश्व प्रसिद्ध कालजयी कृति रामायण महाकाव्य के सामाजिक मूल्यों मानव मूल्यों एवं राष्ट्र मूल्यों की स्थापना हेतु विशेष लेख
प्राचीन भारतीय साहित्य में राम कथा का अंकन
लेखक:
डॉ0 पंकज कुमार
जिला सूचना अधिकारी, भदोही
हिन्द भास्कर
भदोही। भारतीय जनमानस में ‘रामकथा’ एक ऐसा प्रेरक प्रकाशपुंज है, जो अर्वाचीन से अब तक लोगो का नैतिक मार्ग प्रशस्त करता रहा है। प्राचीन भारतीय साहित्य के अनेक कृतियों में राम कथा का विशद वर्णन मिलता है। वेद हमारे सबसे प्राचीन ग्रंथ है उनमें दशरथ, राम, जनक, सीता आदि शब्दो का उल्लेख कई बार हुआ है।
महाभारत में राम कथा का वर्णन कई स्थलों पर हुआ है। उनमें यह कथा विभिन्न अवसरों पर दृष्टांत रूप में कही गई है। इससे ज्ञात होता है कि महाभारत के पूर्व ही रामकथा प्रचलित रही होगी। सम्भवतः इस समय तक गेय रूप में ही प्रचलित हो। श्री बुल्के के अनुसार- आदि रामायण की रचना वाल्मीकि ने गेय आख्यानों व प्रचलित लोक गीतों के आधार पर की थी।
बौद्ध साहित्य के अन्तर्गत राम कथा सम्बन्धी तीन जातक प्रसिद्ध है। इनमें दशरथ जातक सबसे प्राचीन एवं महत्वपूर्ण है। इस कथा में राम को वन भेजने का कारण कैकेयी न होकर दशरथ थे। राम का वनवास काल दण्डकारण्य में न बीतकर हिमालय पर्वत, वनों में बीता। इसमें सीता हरण तथा रावण सम्बन्धी किसी भी कथा का उल्लेख नहीं है।
अनाक्रम नामक जातक में राम तथा सीता आदि के नाम का कहीं उल्लेख नहीं है, किन्तु राम कथा के सदृश वनवास, सीता हरण, जटायु प्रसंग, वालि सुग्रीव-युद्ध, सेतुबंध आदि का संकेत मिलता है। इसमें भी राम को वनवास कैकेयी के कारण नहीं मिलता अपितु मामा के आक्रमण की तैयारी सुनकर राम अपना राज्य स्वयं त्याग देते हैं।
दशरथ कथानक के अनुसार जम्बूद्वीप के राजा दशरथ एक बार बीमार पड़े। तब उन्होने राम को राज्य का उत्तराधिकारी बना दिया। शेष कथा वरदान मांगने आदि की रामायण की तरह है। किन्तु इसमें राम को इस अन्याय के प्रतिरोध के लिए रावण ने उभाड़ा। परंतु राम पिता की आज्ञा भंग करने को तैयार न हुए। इसके बाद की कथा भी रामायण की कथा की ही तरह है। इसमें सीता हरण व राम-रावण युद्ध का उल्लेख नहीं है। इस प्रकार बौद्ध साहित्य की इन तीनों कथाओं में भी आपस में एकरूपता नहीं है।
जैन साहित्य में राम कथा का अधिक व्यापक एवं नूतन रूप मिलता है। इसमें राम, लक्षण, रावण आदि को जैन धर्म के अनुयायी महापुरुष के रूप में बताया गया है। राम कथा का विस्तृत वर्णन पदम चरित्र में मिलता है। इसमें रावण के दशानन नाम पड़ने का कारण बताया है। राम व लक्ष्मण ने अनेको युद्ध इसमें वर्णित है। सीता हरण के लिये रावण स्वयं सिंहनाद करता है, जिसे सुनकर लक्ष्मण राम के पास जाते हैं। इसमें रावण का वध लक्ष्मण के द्वारा होता है। अग्नि परीक्षा में सफल होने पर सीता जैन धर्म में दीक्षित हो जाती हैं।
पुराणों में अठारह महापुराण प्रमुख माने जाते हैं। इनमे वामन, मत्स्य, लिंग तथा मार्कण्डेय पुराण में रामकथा का उल्लेख नहीं है, शेष अन्य पुराणों में राम कथा का वर्णन मिलता है। इनकी कथा में राम को अवतार के ही रूप में वर्णित किया है।
इन पुराणों में अतिरिक्त कई अन्य रामायण ग्रंथ भी उपलब्ध हैं, जो शैली की दृष्टि से पुराणों के ही समान है जैसे-अध्यात्म रामायण अद्भुत रामायण आनंद रामायण, महा रामायण भुशिंडि, लोमश चन्द्र, मंजुल अगस्त आदि कई रामायणें हैं जिनमें राम को साम्प्रदायिक रूप में ढालने का प्रयास स्पष्ट परिलक्षित होता है।
संस्कृति ललित साहित्य में राम कथा-के आधार पर नाटकों एवं काव्यों के अभिनय एवं प्रणयन की प्रथा अत्यंत प्राचीन काल से चली आ रही है। इन नाटकों एवं काव्यों की राम कथा का आभार वाल्मीकि रामायण ही रहा है। कालिदास का रघुवंश भट्टि काव्य - जानकी हरण, क्षेमेन्द्र की रामायण-मंजरी भास का प्रतिमा-नाटक आदि में वाल्मीकि रामायण की मूल कथा का ही अनुसरण किया है। यद्यपि इनमें सम्पूर्ण राम कथा क्रमबद्ध नही है। रामकथा के किसी मार्मिक स्थल को आधार बनाकर ये रचनायें की गई हैं, जिसमें कल्पना का सहारा लेकर बहुत सी अलौकिक बातों का समावेश कर दिया है।
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