अमृतवाणी
वयस: परिमाणोsपि य: खल: खल एव स:।
सुम्पक्वमपि माधुर्यं नोपयातीन्द्रवारुणम्।।
(चा०नी० - १२/२०)
अर्थात् - अवस्था के पक जाने पर भी (अर्थात् वृद्ध हो जाने पर भी) जो दुष्ट है, वह दुष्ट ही रहता है, अपनी प्रवृत्ति का त्याग नहीं करता, जैसे - अत्यंत पकी हुई कड़वी तोरई भी मीठी नहीं होती।
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