आधुनिक बिहार: सामाजिक, आर्थिक ,जातिगत और शैक्षिक सुधार
प्रो. आशीष श्रीवास्तव
बिहार भारत के सबसे प्राचीन और सांस्कृतिक रूप से समृद्ध क्षेत्रों में से एक है। इसका इतिहास, शिक्षा, और सामाजिक-आर्थिक परिवेश इसे विशिष्ट बनाते हैं। प्राचीन काल में "मगध" के नाम से प्रसिद्ध यह क्षेत्र मौर्य और गुप्त साम्राज्यों का केंद्र था। नालंदा और विक्रमशिला जैसे शिक्षा केंद्रों ने इसे वैश्विक ज्ञान और दर्शन का केंद्र बनाया। सम्राट अशोक ने यहीं से बौद्ध धर्म का प्रचार किया, जिससे यह क्षेत्र धार्मिक और सांस्कृतिक दृष्टि से और भी समृद्ध हुआ। मध्यकाल में, बिहार मुगलों और दिल्ली सल्तनत के अधीन एक प्रशासनिक और व्यापारिक केंद्र बन गया, लेकिन इस दौरान शिक्षा संस्थानों का पतन हुआ। आधुनिक काल में, बिहार भारतीय स्वतंत्रता संग्राम का केंद्र बना, जहाँ चंपारण सत्याग्रह ने महात्मा गांधी के नेतृत्व में स्वतंत्रता आंदोलन को नई दिशा दी। धार्मिक और सांस्कृतिक रूप से यह जैन, बौद्ध और हिंदू धर्म के पवित्र स्थलों जैसे बोधगया, वैशाली और राजगीर के लिए प्रसिद्ध है। बिहार में शिक्षा का इतिहास प्राचीन नालंदा और विक्रमशिला विश्वविद्यालयों से शुरू हुआ। लेकिन मध्यकाल में इसका पतन हुआ, और आधुनिक काल में ब्रिटिश शासन के दौरान शिक्षा का सीमित विस्तार हुआ। स्वतंत्रता के बाद सरकारी योजनाओं और नीतियों के माध्यम से शिक्षा को पुनर्जीवित करने का प्रयास किया गया। आज, बिहार में प्राथमिक, माध्यमिक और उच्च शिक्षा के स्तर पर प्रगति हो रही है, लेकिन अशिक्षा, ड्रॉपआउट दर, और गुणवत्ता में सुधार जैसी चुनौतियाँ अभी भी मौजूद हैं। राष्ट्रीय शिक्षा नीति (NEP) 2020 ने शिक्षा प्रणाली के पुनर्गठन और सुधार के लिए एक ठोस आधार प्रदान किया है। इसमें प्रारंभिक बाल्यावस्था शिक्षा, मातृभाषा में शिक्षा, डिजिटल शिक्षा का विस्तार, और व्यावसायिक शिक्षा को बढ़ावा देने जैसे पहल शामिल हैं। NEP 2020 के माध्यम से, बिहार में शिक्षा को सुलभ और समावेशी बनाने के प्रयास किए जा रहे हैं। लड़कियों, अनुसूचित जातियों और वंचित समुदायों के लिए विशेष योजनाओं ने असमानता को कम करने में मदद की है। बिहार की सामाजिक संरचना जातिगत व्यवस्था से गहराई से प्रभावित रही है। उच्च और निम्न जातियों के बीच असमानता ने लंबे समय तक सामाजिक विभाजन को गहरा किया, लेकिन भूमि सुधार, शिक्षा का विस्तार, और आरक्षण नीतियों ने इस विभाजन को कम करने में योगदान दिया। समावेशी शिक्षा और सामाजिक जागरूकता के प्रयासों से महिलाओं और वंचित वर्गों की स्थिति में सुधार हुआ है। हालांकि, जातिगत पहचान का प्रभाव अब भी समाज और राजनीति में महत्वपूर्ण बना हुआ है। आर्थिक दृष्टि से बिहार मुख्यतः कृषि प्रधान राज्य है, जहाँ धान, गेहूं और मक्का प्रमुख फसलें हैं। हालांकि, औद्योगिक विकास की कमी और बेरोजगारी जैसी समस्याएँ राज्य के आर्थिक विकास में बाधा बनी हुई हैं। इसके बावजूद, सेवा क्षेत्र, छोटे उद्योगों और सरकारी योजनाओं के माध्यम से आर्थिक सुधार के प्रयास किए जा रहे हैं। बिहार के प्रवासी मजदूर, जो देश के विभिन्न हिस्सों में काम करते हैं, राज्य की अर्थव्यवस्था और सामाजिक संरचना में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। राजनीतिक रूप से, बिहार संघर्ष और सामाजिक न्याय आंदोलनों का केंद्र रहा है। स्वतंत्रता संग्राम के समय से लेकर आज तक, यह राजनीति का एक अहम केंद्र रहा है। जाति आधारित राजनीति ने यहाँ लंबे समय तक शासन किया, लेकिन हाल के वर्षों में विकास, रोजगार, और बुनियादी ढाँचे जैसे मुद्दों ने राजनीतिक विमर्श में प्रमुख स्थान पाया है। अंतर विश्वविद्यालय शिक्षक शिक्षा केंद्र (IUCTE), वाराणसी, जोकि विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (UGC), शिक्षा मंत्रालय, भारत सरकार का एक स्वायत्त संस्थान है, जिसे काशी हिन्दू विश्वविद्यालय के परिसर में स्थापित किया गया है, बिहार में शिक्षा को सशक्त करने और गुणवत्ता सुधारने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है, विशेषकर तब, जब बिहार राज्य के सभी विश्वविद्यालय और राज्य सरकार के शिक्षा विभाग अपना सम्पूर्ण सहयोग दें और मिलकर कार्य करें। IUCTE उन्नत प्रशिक्षण कार्यक्रम, कार्यशालाएँ और शोध के माध्यम से शिक्षकों की दक्षता बढ़ाने और समावेशी शिक्षा को बढ़ावा देने का कार्य करता है। यह राष्ट्रीय शिक्षा नीति (NEP) 2020 के लक्ष्यों के अनुरूप शिक्षकों को तैयार करने और स्थानीय शिक्षा प्रणाली की विशिष्ट चुनौतियों का समाधान करने में मदद करता है। इसके माध्यम से, बिहार के शिक्षक शिक्षा में सुधार और छात्रों को बेहतर शिक्षा प्रदान करने में सक्षम बन सकते हैं। बिहार का सामाजिक, आर्थिक, जातिगत और शैक्षिक परिवेश जटिल और गतिशील है। यह अपने गौरवशाली अतीत को पुनर्जीवित करने और आधुनिक चुनौतियों का समाधान खोजने के लिए निरंतर प्रयासरत है। शिक्षा, विकास योजनाओं और सामाजिक जागरूकता के माध्यम से बिहार धीरे-धीरे सामाजिक और आर्थिक बदलाव की ओर अग्रसर हो रहा है। NEP 2020 और IUCTE जैसे प्रयास बिहार की शिक्षा प्रणाली को एक नई दिशा देने में मदद कर सकते हैं, जिससे यह राज्य सतत विकास और समृद्धि की ओर बढ़ सके। बिहार की यह यात्रा न केवल उसके अतीत की गाथा है, बल्कि इसके उज्ज्वल भविष्य की संभावनाओं का प्रतीक भी है।
(लेखक महात्मा गाँधी केंद्रीय विश्वविद्यालय, मोतिहारी, चम्पारण के पूर्व आचार्य तथा वर्तमान में यूजीसी के अंतर-विश्वविद्यालय अध्यापक शिक्षा केंद्र, वाराणसी में आचार्य, शिक्षा/उच्च शिक्षा नीति तथा संकायाध्यक्ष, शैक्षणिक और शोध हैं)
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