पुलिस अब सिर्फ डंडे की नहीं, दीपक की प्रतीक है, जो अंधेरे में भी समाज को रोशन कर रही है
पुलिस अब सिर्फ डंडे की नहीं, दीपक की प्रतीक है, जो अंधेरे में भी समाज को रोशन कर रही है

प्रो0. आशीष श्रीवास्तव
हिन्द भास्कर(हिन्द भास्कर):- पुलिस, एक ऐसा शब्द जो दशकों तक डर, कठोरता और दूरी का पर्याय बना रहा। हमारी पीढ़ी ने जिस पुलिस व्यवस्था को बचपन में देखा, वह कहीं न कहीं भयभीत कर देने वाली थी। थाने का परिसर, डांटते-फटकारते दरोगा, और आमजन से दूरी बनाए रखने वाली एक कठोर व्यवस्था, यही स्मृतियाँ थीं। लेकिन हाल के दिनों में जब मुझे कुछ कारणों से एक पुलिस थाने में समय बिताने का अवसर मिला, तो अनुभवों का स्वरूप एकदम भिन्न था, जैसे कोई नया संसार खुल गया हो।
यह नया संसार सख्ती के भीतर संवेदनशीलता का, अनुशासन के भीतर सेवा का और आदेश के भीतर समर्पण का है। यह परिवर्तन किसी संयोग का परिणाम नहीं, बल्कि एक दीर्घकालिक नीतिगत सोच, प्रशासनिक इच्छाशक्ति और नेतृत्व के सुशासन का प्रमाण है। इस लेख में मैं इस परिवर्तनशील परिदृश्य का भावनात्मक व विश्लेषणात्मक चित्रण प्रस्तुत कर रहा हूँ, जिसमें पुलिस कर्मियों की शिक्षा के प्रति दृष्टि, उनके मानवीय रूप, और मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के नेतृत्व में उत्तर प्रदेश में हुई पुलिस सुधार की झलक समाहित है।
एक साधारण दिन में, एक असाधारण अनुभव तब सामने आया जब मैंने एक थाने में भ्रमण किया। करीब 17 पुलिसकर्मियों से बात हुई, जिसमें चौराहों पर खड़े सिपाही से लेकर IPS स्तर के अधिकारी भी शामिल थे। सबसे ज़्यादा जिसने मुझे भीतर तक झकझोर दिया, वह था ‘एक सिपाही’ जो लाल बत्ती पर यातायात नियंत्रित करता है। उसने अत्यंत आत्मीयता से अपने बच्चों की शिक्षा के प्रति समर्पण बताया, कैसे वह रोज़ रात को देर से लौटकर बच्चों को पढ़ाता है, कैसे वह चाहता है कि उसके बच्चे उस समाज के लिए उदाहरण बनें जिसे वह स्वयं अनुशासन में रखने का प्रयास करता है। उसकी आँखों में चमक थी, गर्व की, सेवा की और शिक्षित भविष्य की।
आम धारणा यही है कि पुलिस व्यवस्था में कठोरता और आदेशपालन सर्वोच्च होता है, लेकिन इन बातचीतों में मैंने एक आश्चर्यजनक ललक देखी, शिक्षा के प्रति, आत्मविकास के प्रति, और समाज के प्रति उत्तरदायित्व के प्रति। यह वही पुलिस है जो अब अपने बच्चों को सर्वोत्तम शिक्षा देना चाहती है, स्वयं डिजिटल प्लेटफॉर्म्स पर कानून और मानवाधिकार पढ़ रही है, और जनसेवा को अपना सर्वोच्च धर्म मान रही है। एक अधिकारी से बातचीत के दौरान, दो सिपाही एक नवयुवक को थाने लाए। उसके पास लाइसेंसी रिवॉल्वर थी और रौब के साथ बोला, "दो मिनट रुकिए, मंत्रीजी से बात कराता हूँ जो आपके प्रश्नों का उत्तर देंगे।" अधिकारी ने पूरी शालीनता से मंत्रीजी से बात की और जैसे ही बातचीत पूरी हुई, पुनः उसी प्रश्न को उसी संजीदगी से दुहराया, इस बार ‘रईसज़ादे’ की ठसक गायब थी।
यह परिवर्तनशील शक्ति केवल अनुशासन की नहीं थी, यह थी ‘सुशासन’ की, जिसे मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने उत्तर प्रदेश में स्थापित किया है। मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के कार्यकाल में पुलिस विभाग ने एक नए युग की ओर प्रस्थान किया है। अपराध नियंत्रण, न्यायिक प्रक्रिया में पारदर्शिता, और पुलिसकर्मियों के व्यवहार में आए मानवीय दृष्टिकोण ने पुलिस को केवल एक ‘शक्ति संस्थान’ नहीं, बल्कि ‘सेवा संस्थान’ बना दिया है। राज्य सरकार द्वारा शुरू की गईं 'मिशन शक्ति', 'पुलिस मित्र', 'डायल 112' जैसी पहलें और सुदृढ़ प्रशिक्षण प्रणाली इस बदलाव की नींव रही हैं। एक समय था जब मुझे ₹75 देकर अपनी हीरो-पुक बाइक थाने से छुड़वानी पड़ी थी, वहीं आज पुलिसकर्मी नागरिकों के साथ आत्मीय संवाद करते हैं, महिलाओं की सुरक्षा सुनिश्चित करने में अग्रणी भूमिका निभा रहे हैं, और शांति व्यवस्था बनाए रखने में हर कदम पर सजग हैं।
पुलिस अब केवल कानून का रक्षक नहीं, बल्कि समाज का मार्गदर्शक बन रही है। उसकी वर्दी में अब कठोरता नहीं, करुणा झलकती है। जिस तरह हर बच्चा अपने शिक्षक से प्रेरित होता है, उसी तरह अब पुलिसकर्मी समाज को प्रेरित कर रहे हैं। और यह सब संभव हुआ है जब सेवा की भावना को शिक्षा के उजाले से रोशन किया गया है और इसे सुशासन की राह दिखाई गई है। यह भी समय की पुकार है कि पुलिस व्यवस्था पर गहन शोध किए जाएँ, जो न केवल उनकी कार्यशैली बल्कि उनके भीतर के सामाजिक और भावनात्मक संरचनाओं को समझ सकें। उनकी मानवीय कहानियाँ, संघर्ष, और समाज के लिए उनकी सेवा भावना समाजशास्त्र, लोक प्रशासन और शिक्षा क्षेत्र के शोधकर्ताओं के लिए गहन अध्ययन की वस्तु हो सकती हैं।
हमारे समाज में जब तक पुलिस को एक भय का प्रतीक माना जाएगा, तब तक लोकतंत्र अधूरा रहेगा। लेकिन यदि हम उसे एक सहयोगी, एक मार्गदर्शक, और एक संवेदनशील सेवा प्रदाता के रूप में देखें, तब यह व्यवस्था पूर्ण होगी। आज उत्तर प्रदेश में जो परिवर्तन देखा जा रहा है, वह एक दृष्टांत है कि यदि राजनीतिक नेतृत्व, प्रशासनिक इच्छाशक्ति, और पुलिसबल की संवेदनशीलता एक साथ आ जाए, तो सबसे कठोर मानी जाने वाली व्यवस्था भी प्रेम, सेवा और विश्वास का स्रोत बन सकती है। आइए, हम भी इस नए पुलिस परिवेश का सम्मान करें, और अपने बच्चों को बताएं कि पुलिस अब सिर्फ डंडे की नहीं, दीपक की प्रतीक है, जो अंधेरे में भी समाज को रोशन कर रही है। (लेखक महात्मा गाँधी केंद्रीय विश्वविद्यालय, मोतिहारी, चम्पारण के पूर्व आचार्य तथा वर्तमान में यूजीसी के अंतर-विश्वविद्यालय अध्यापक शिक्षा केंद्र, वाराणसी में आचार्य, शिक्षा/उच्च शिक्षा नीति तथा संकायाध्यक्ष, शैक्षणिक और शोध हैं)
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