अमृत वाणी

May 30, 2024 - 05:26
 0  312
अमृत वाणी

दोषानापि गुणीकर्तुं दोषीकर्तुं गुणानापि।

शक्तो वादी न तत्त्यंदोष दोष गुणा गुणाः।।

(वल्लभदेव - २१५)

अर्थात् - वाद-विवाद में कुशल व्यक्ति प्राणियों को भी गुण और गुणों को भी दोष सिद्ध करने में समर्थ हो सकता है, लेकिन वह सत्य नहीं होता। दोष, दोष ही हैं और गुण, गुण ही हैं।

What's Your Reaction?

like

dislike

love

funny

angry

sad

wow

KeshavShukla विभिन्न राष्ट्रीय साहित्यिक-सांस्कृतिक मंचों पर साहित्य विमर्श, कविता, कहानी लेखन ,स्क्रिप्ट लेखन, नाटकों का मंचन, रेडियो स्क्रिप्ट लेखन, उद्घोषणा कार्य एवं पुस्तक समीक्षा।