अमृत वाणी

May 30, 2024 - 05:26
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अमृत वाणी

दोषानापि गुणीकर्तुं दोषीकर्तुं गुणानापि।

शक्तो वादी न तत्त्यंदोष दोष गुणा गुणाः।।

(वल्लभदेव - २१५)

अर्थात् - वाद-विवाद में कुशल व्यक्ति प्राणियों को भी गुण और गुणों को भी दोष सिद्ध करने में समर्थ हो सकता है, लेकिन वह सत्य नहीं होता। दोष, दोष ही हैं और गुण, गुण ही हैं।

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