अयोध्या का सूर्यकुण्ड उन पवित्र स्थलों में से एक है,जहाँ इतिहास, श्रद्धा और विकास एक साथ चल रहे हैं

अयोध्या का सूर्यकुण्ड उन पवित्र स्थलों में से एक है,जहाँ इतिहास, श्रद्धा और विकास एक साथ चल रहे हैं

Apr 15, 2025 - 22:31
Apr 15, 2025 - 22:32
 0  5
अयोध्या का सूर्यकुण्ड उन पवित्र स्थलों में से एक है,जहाँ इतिहास, श्रद्धा और विकास एक साथ चल रहे हैं

अयोध्या(हिन्द भास्कर):- सोमवार की सन्ध्या, जब घड़ी ने पांच का संकेत दिया, मैं नाका हनुमान गढ़ी से ऑटो में बैठ सूर्यकुण्ड की ओर निकल पड़ा। यह केवल एक यात्रा नहीं थी, यह अपने कुलदेवता भगवान सूर्य के चरणों में पहुंचने का आंतरिक आह्वान था। हनुमानजी की जयकारों से गूंजती गली से निकलकर जब ऑटो ने सूर्यकुण्ड की ओर मोड़ लिया, तब अयोध्या की हवाओं में कोई अदृश्य अनुभूति समा गई थी। सूर्यकुण्ड पहुँचते ही मन स्थिर हो गया।

तेजस्वी भगवान सूर्य की दिव्य प्रतिमा के दर्शन मात्र से ऐसा लगा मानो जीवन में नई ऊर्जा का संचार हो रहा हो। इतिहास बताता है कि यह वही स्थल है जहाँ त्रेतायुग में भगवान राम ने अपने कुलदेवता सूर्य की उपासना की थी। युद्ध से पूर्व आदित्यहृदय स्तोत्र का पाठ कर उन्होंने सूर्यदेव से आशीर्वाद लिया था। "ॐ ॐ सूर्याय आदित्याय शान्ताय सर्वाय हरये नमः।

नमः सूर्याय शान्ताय सर्वाय हरये नमः।" ऐसी मान्यता है कि यह उपदेश महर्षि वशिष्ठ ने यहीं पर उन्हें दिया था। पुराणों के अनुसार सूर्यकुण्ड का संबंध न केवल रामायण काल से है, बल्कि यह गुप्तकाल के सूर्योपासना केंद्रों में भी प्रमुख रहा है। कुछ विद्वान मानते हैं कि ऋषि कश्यप—सूर्यदेव के पितामह—ने भी यहाँ तप किया था, और उसी के प्रभाव से यह भूमि तेज और तप की स्थली बन गई। आज यह पावन तीर्थ पुनः सज-संवर कर श्रद्धालुओं के स्वागत में खड़ा है। शाम के समय प्रस्तुत साउंड एंड लाइट शो न केवल सौंदर्य का अनुभव कराता है, बल्कि धर्म, संस्कृति और इतिहास का सजीव पाठ भी बन जाता है।

आलोक, ध्वनि और कथा के इस त्रिवेणी संगम में बैठा हर दर्शक जैसे अतीत में प्रवेश कर जाता है। सूर्यकुण्ड के घाटों पर आज भी सूर्य षष्ठी (छठ) के पर्व पर श्रद्धालुओं की अपार भीड़ उमड़ती है। लोकगीतों की मधुर स्वर-लहरियाँ यह सिद्ध करती हैं कि यह तीर्थ जन-मानस की आत्मा में रचा-बसा है। लौटते समय जब ऑटो पुनः नाका हनुमान गढ़ी की ओर मुड़ा, तो अयोध्या का रूप कुछ और ही प्रतीत हो रहा था।

सड़कें वही थीं, पर अब उनमें केवल ईंट-पत्थर नहीं, एक सपना आकार लेता दिख रहा था—रामराज्य का सपना। अयोध्या का यह तीर्थ न केवल एक ऐतिहासिक स्मृति है, यह एक जीवित प्रतीक है—उस तेज का, उस धर्म का, और उस विकास का जिसकी ओर हम सब बढ़ रहे हैं। आज जब सूर्यकुण्ड आलोकित हो रहा है, तो अयोध्या का प्रत्येक मार्ग स्वयं में सूर्योदय का अनुभव कर रहा है। और शायद यही है रामराज्य की सबसे सुंदर सुबह।

लेखक परिचय: नवीन पाण्डेय एक संवेदनशील रेडियो प्रस्तोता, रचनाकार और अध्यात्मप्रिय यात्री हैं, जो अपनी यात्राओं को भावनाओं और ऐतिहासिक दृष्टिकोण के साथ शब्दों में पिरोते हैं।

What's Your Reaction?

like

dislike

love

funny

angry

sad

wow