मजबूत भारत, हिंदुत्व की पहचान है नरेंद्र मोदी

मजबूत भारत, हिंदुत्व की पहचान है नरेंद्र मोदी

May 23, 2025 - 12:15
May 23, 2025 - 12:45
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मजबूत भारत, हिंदुत्व की पहचान है नरेंद्र मोदी

हिन्द भास्कर:- आपमें से कुछ को लग सकता है कि मैं मोदी जी को अपमानित कर रहा हूँ। ना ! ऐसा नहीं है ! आज ट्विटर पर एक वीडियो सुना, सोचा आपसे भी साझा कर लूँ। देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी 2014 से चुनाव जीत रहे हैं। भक्त इसे उनका करिश्मा मानते हैं और हेटर समझ ही नहीं पा रहे कि इसका कारण क्या है। तो दोष मढ़ देते हैं,कि हिन्दू मुस्लिम विभाजन करके जीतते हैं। मेरा यह मानना है कि नरेंद्र मोदी नामका कोई एक व्यक्ति नहीं एक सोच है, एक एहसास है -देश के मजबूती का ,मजबूत भारत का । अखंड भारत के राष्ट्र प्रेम से ओतप्रोत मतदाता स्वयं में नरेंद्र मोदी बन गया है।

राष्ट्र का मतदाता राष्ट्र की शक्ति है जिसके माध्यम से देश के अंतर्मन में छुपा हुआ क्रोध सामने आया है। कुछ बहुत गहरे जख्म हैं, कुछ गहरे घाव हैं, कुछ धोखे हैं, जिन्हें व्यक्त करने का कोई मौका नहीं मिला था देश को, एक मौका मिला, जिसका नाम है नरेंद्र मोदी। सवाल यह है कि यह गंगा जमुनी तहजीब, यह कौमी एकता, यह गुलदस्ता कितना सच है ?हिन्दू मुस्लिम में दरार है या नहीं, अविश्वास है या नहीं, या सब कुछ ठीक है, देश के अंदर देश के बाहर जिस तरह की साजिश चल रही है सनातन संस्कृति और राष्ट्र शक्ति हिंदुस्तान व हिंदुत्व को लेकर मोदी ने हिंदुस्तान, हिंदुत्व संस्कृति को जागरूक व सजग किया है।

भारत की संस्कृति समाज सभ्यता को बार-बार तार -तार करने की कोशिश की गई और क्यों किया गया कैसे हुआ इस सवाल का जबाब ढूंढें। क्या आपको मालूम है कि सन 1800 से इस देश में हिन्दू मुस्लिम दंगे हो रहे हैं। 1926 में पूरे देश में दंगे हुए थे। 1946 में डायरेक्ट एक्शन के नाम पर हुए दंगे तो बहुचर्चित हैं ही। तो ये गंगा जमुनी तहजीब कहाँ है ? आईये एक और तरह से देखते हैं। आजादी का आंदोलन चला, गांधीजी हमारे नेता थे, हम सब उनको बहुत प्यार करते हैं, आदर करते हैं, कोई शक ही नहीं। 1932 में अम्बेडकर से गांधी जी का मतभेद हुआ। तो गांधी जी ने अम्बेडकर के घर के बाहर आमरण अनशन शुरू कर दिया।

अम्बेडकर को राष्ट्रीय एकता अखंडता के लिए गांधी जी की बात को मनाना पड़ा,पर उस समय अम्बेडकर ने बहुत बड़ी बात कही। उन्होंने कहा कि बात तो मेरी ही सही है, किन्तु गांधी जी की देश को आवश्यकता है, मैं उनका जीवन खतरे में नहीं डाल सकता, इसलिए अपनी मांग वापस लेता हूँ। 1939 में कांग्रेस अध्यक्ष के चुनाव में सुभाषचंद्र बोस जीत गए थे, सीतारामैया हार गए थे। लेकिन गांधी जी ने कहा - नहीं बोस नहीं बनेंगे, अगर बने तो मैं कांग्रेस छोड़ दूंगा। और विवश सुभाष बाबू ने त्यागपत्र दे दिया। यहाँ भी गांधी जी की जिद सामने आई। अंग्रेजों के खिलाफ गांधी जी ने भूख हड़तालें की और अंग्रेज झुके भी। लेकिन सवाल यह है कि जब जिन्ना ने देश विभाजन की बात की तब गांधी जी ने उसके घर के सामने आमरण अनशन क्यों नहीं किया ? इस सवाल का जबाब कोई नहीं देगा।

खैर 1947 में देश का विभाजन हुआ। पंद्रह बीस लाख लाशें देखी गईं, जो हिटलर नहीं कर पाया, वह मंजर सामने आया। एक देश करोड़ लोग विस्थापित हुए और वषों तक उन्होंने नारकीय जीवन झेला। पूरे मानव इतिहास में इससे भयावह त्रासदी दूसरी नहीं। सैकड़ों महिलाओं को नग्नावस्था में सडकों पर दौड़ाया गया। कितनी दर्दनाक स्थिति। लेकिन हुई क्यों ? केवल इसलिए कि मुस्लिम ने कहा - हम आपके साथ नहीं रहेंगे और इसके बाद भी वही बकबास चल रही है - गंगा जमुनी तहजीब। आप सच का सामना कब तक नहीं करोगे ? उस दौर में जो विस्थापित हुए, जिन्होंने नारकीय कष्ट झेले, वे अब इस दुनिया में नहीं हैं, लेकिन उनकी कहानियां ज़िंदा हैं।

याद रखिये कहानियां अपने हीरो या विलेन से अधिक उम्र रखती हैं। आज भी एक सवाल है देश के इतिहासकारों पर की 1947 बटवारा की त्रासदी में लगभग 40 लाख लोग मारे गए लेकिन नियत के बेईमान इतिहासकारों ने इस बारे में दोषी है और उसकी सजा क्या है ?ब्रिटेन बंटवारे का बीज बोया जब बंटवारा हुआ तो वह भी पल्ला झाड़ लिया। न कुछ इस पर बोला, न ही भारत पाकिस्तान के बड़े नेताओं ने इस बंटवारे में मारे गए लोगों की जिम्मेदारी ली। विश्व के इतिहास की सबसे बड़ी त्रासदी की वीभत्स कहानियां आज भी सुनने वालों का कलेजा फाड़ देती है। शांति सद्भाव के के साथ बटवारा हो इसके प्रति नैतिक जिम्मेदारी का निर्वाह नहीं किया।

न इतिहासकारों ने इस घटना के दोषी को कटघरे में खड़ा नहीं किया । इसमें ब्रिटेन भी जिम्मेदार है और भारत-पाकिस्तान के बड़े नेता भी दोषी हैं। बंटवारे के बाद की तारीख में सेकुलर हिंदू मुस्लिम गंगा जमुनी तहजीब की बात करते हैं, सेकुलर लोगों को हिंदू मुस्लिम से इतना ही प्यार था और गंगा जमुनी तहजीब के नुमाइंदे थे तो देश का बंटवारा क्यों हुआ? क्या उस समय देश के चतुर राजनीतिज्ञो को पता नहीं था तमीज तहजीब पहनावा भाषा,पूजा स्थल उनसे अलग है और हम मूर्ति पूजा करते हैं और वह मूर्ति को खंडित। हिन्दू मुस्लिम अलगाव का कारण भी यही है। जिस समस्या के समाधान के लिए हिंदू मुसलमान का बंटवारा का दो देश बने। नेहरू लियाकत के समझौते ने फिर उसी दहलीज पर हिंदुस्तानियों को खड़ा कर दिया जो19 47 में बंटवारे में हुआ था। देश में आजादी के बाद बड़ी चीजें होने लगीं ।

शरीया की बातें होने लगीं, चार शादियां कर सकते हैं, शाह बानो आती थी तो पूरा संसद शीर्षासन करने लगता। सुप्रीम कोर्ट को दबाव में लाने की राजनीति संसद के माध्यम से किया गया। कांग्रेस ने मुस्लिम परस्त राजनीति की शुरुआत की और इन लोगों का बस चला होता देश में शरीयत लागू कर दिया होता। लोकतंत्र की शक्ति संविधान में निहित है और संविधान से बड़ा देश में कोई और ग्रंथ नहीं है ,देश में रहना है तो देश के संविधान के तहत हर कानून का पालन करना होगा। इसमें धर्म नहीं आना चाहिए।इस सवाल को दबाया कैसे गया ? कांग्रेस के हाथ में ताकत आई।

पार्टीशन की विभीषिका के आरोप से बचना था, हम फ़ैल हो गए, इस अपराधबोध से बचना था। तो सारी पाठ्यपुस्तकें अपने हिसाब से लिखीं, यूनिवर्सिटी के वाइस चांसलर, शिक्षाविद अपने हिसाब से रखे, अपने लोगों को ही मंच दिए, ऐसी विचारधाराओं को अत्यधिक प्रचार-प्रसार किया गया । नई पीढ़ी को समझाया गया - दे दी हमें आजादी बिना खड्ग बिना ढाल, साबरमती के संत तूने कर दिया कमाल। जवाहरलाल नेहरू गुलाब का फूल लगाते थे और बच्चे उन्हें चाचा नेहरू कहते थे। आजादी के बस दो ही हीरो। सेकुलर बनने की होड़ रोजा इफ्तारों का सरकारी व्यवस्था से आयोजन बड़े पैमाने पर कांग्रेस ने आरंभ किया और मुस्लिम वोटों की फिशिंग स्टार्ट कर दी।

देश के क्षेत्रीय राजनीतिक दलों ने सेकुलर बनने की होड़ में मुस्लिम परस्त बन गए। देश के विभिन्न राज्यों में क्षेत्रीय दलों ने भी मुस्लिम परस्त राजनीति शुरू कर दिया। एक सवाल और भी है। आज अगर भारत पाकिस्तान और बांगला देश की मुस्लिम आबादी को जोड़ें तो लगभग पचास करोड़ होती है। इतने तो किसी मुस्लिम देश में भी नहीं हैं। कहाँ से आये ये इतने मुस्लिम। एक नया नेरेटिव स्टार्ट किया। ये हिन्दू ही थे, प्यार से कन्वर्ट हो गए, सूफियों ने दरवेशों ने बड़े प्यार से इन्हें मुस्लिम बना लिया। एक उदाहरण देखिये। जैसे हमारा देश है, ऐसे ही एक देश था पर्सिया, जहाँ पारसी रहते थे।

कलाओं में ट्रेड में सबमें बहुत आगे था पर्सिया। मुस्लिमों का आक्रमण हुआ और पच्चीस तीस साल में ही उस देश में एक भी पारसी जिन्दा नहीं बचा। लूट ह्त्या बलात्कार की वही कहानी। जो जान बचाकर भाग गए वे ही बचे, कुछ पारसी भारत में भी आये और भारत तो शरण देने में आगे रहता ही है। पर्सिया के सारे पारसी बड़े प्यार से कन्वर्ट हो गए। और देश का नाम हो गया ईरान। वहां से आए बहुत से पारसी यहां के संस्कृति समाज और व्यवस्था को स्वयं में स्वीकार कर हिंदुस्तानी बन गए आज के तारीख में मजबूत भारत के मजबूत स्तंभ बन गए हैं। हिंदुस्तान में इस्लाम मानने वालों में ऐसा क्यों नहीं है? इस्लामिक धर्मांतरण एशिया में अफ्रीका में ऐसा प्यार पच्चीस तीस देशों ने बर्दास्त किया है। और वे सबके सब पूरी तरह इस्लामी बन गए।

लेटेस्ट कश्मीर, जब वहां से चार लाख हिन्दू भगाये गये और पूरा कश्मीर इस्लामिक हो गया। आप रहिये स्वप्नलोक में, वे अपने आप में पूरी तरह स्पष्ट हैं। जैसा कि बगदादी कहता है - अगर हमारे साम्राज्य में कोई गैर मुस्लिम रहेगा तो उसे डिम्मी बनकर रहना होगा। आप या तो बहुत भोले हैं, या इतने मूर्ख कि देखते ही नहीं कि दुनिया में क्या हो रहा है। अगर आप इन तथ्यों को नकारते हैं, तो आप या तो झूठे हैं, या दलाल हैं। एक सवाल का जबाब दीजिये। अगर आप कोई वाहन चलाते हुए किसी मुस्लिम बहुल इलाके से निकलते हैं, तो क्या अतिरिक्त सावधान नहीं हो जाते। आप जानते हैं, कहीं गलती से भी कोई टक्कर हो गई, तो खातिरदारी पूरी झकास होगी।

इस देश की पार्लियामेंट पर हमला हुआ। और हमले में शामिल अफजल गुरू के सम्मान में समर्थन में हजारों हजार लोग खड़े हो गए। कुछ साल पहले मुम्बई के आजाद मैदान में एक रैली हुई, रोहिंग्याओं के समर्थन में। आपका क्या लेना देना रोहिंग्याओं से ? और रैली के अंत में क्या हुआ ?जो शहीद स्मारक था वहां, उसे जूते मार मार कर तोड़ दिया गया। इतनी नफ़रत आपके मन में इस देश के लिए ?और कोई कुछ कहता ही नहीं। गंगा जमुना तहजीब की बात करने वाले यह कहां स्वयं स्वीकार कर पाते हैं गीता, कुरआन, बाईबिल सब एक समान हैं। ईश्वर एक हैं नाम अनेक है।पूजा पद्धति अनेक है।

सेकुलर एक नकलची बंदर होते हैं अवस्था और व्यवस्था देखकर स्वयं को बदल लेते हैं। हिन्दू यह सब देखते रहे, समझते रहे, मन ही मन कुढ़ते रहे, लेकिन उनके पास अपने गुस्से को प्रगट करने का कोई माध्यम नहीं था। नरेंद्र मोदी सामने आये, तो हिन्दुओं ने अपने गुस्से को उस खूंटी पर टांगना शुरू कर दिया। मोदी ने जगाया संगठित किया, आज देश की जनता हिंदुस्तान हिंदुत्व और संस्कृति को लेकर हर मंच पर अपनी उपस्थिति बड़ी पुरजोर से दर्ज कर रहा है।

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