‘मृच्छकटिकम्’ में स्त्रियों की दशा बहुआयामी कहीं त्यागमयी गृहिणी, कहीं पवित्र प्रेमिका, तो कहीं संघर्षरत दासी: साधना शर्मा
‘मृच्छकटिकम्’ में स्त्रियों की दशा बहुआयामी कहीं त्यागमयी गृहिणी, कहीं पवित्र प्रेमिका, तो कहीं संघर्षरत दासी: साधना शर्मा

गाजीपुर(हिन्द भास्कर):- स्नातकोत्तर महाविद्यालय के भाषा संकाय के अन्तर्गत संस्कृत विभाग की पूर्व शोध प्रस्तुत संगोष्ठी का आयोजन विभागीय शोध समिति एवं अनुसंधान एवं विकास प्रकोष्ठ के तत्वावधान में महाविद्यालय के सेमिनार कक्ष में किया गया। इस अवसर पर महाविद्यालय के प्राध्यापक, शोधार्थी व छात्र- छात्राएं उपस्थित रहे। उक्त संगोष्ठी मे संस्कृत विभाग की शोधार्थिनी साधना शर्मा ने अपने शोध-प्रबन्ध शीर्षक “ शूद्रक प्रणीत ‘मृच्छकटिकम्’ में स्त्री की दशा : एक अध्ययन” प्रस्तुत करते हुए कहा कि‘मृच्छकटिकम्’ में स्त्रियों की दशा बहुआयामी रूप में सामने आती है।
इस कहानी में स्त्री कहीं त्यागमयी गृहिणी, कहीं पवित्र प्रेमिका, तो कहीं संघर्षरत दासी की भूमिका में प्रदर्शित होती है। इस कहानी में स्त्री की जो भूमिका प्रदर्शित की गई है, वही इसे सामाजिक यथार्थ के निकट लाता है। ‘मृच्छकटिकम्’ केवल चारुदत्त और वसन्तसेना की प्रेमकथा ही नहीं है, बल्कि उस समय के समाज में स्त्रियों की स्थिति का भी सजीव चित्रण करता है। इस नाटक में विभिन्न वर्गों की स्त्रियों की झलक मिलती है जैसे गणिका, गृहिणी, सेविका, दासी तथा कुलवधू।
वसन्तसेना गणिका होते हुए भी कुलवधू जैसी मर्यादित, त्यागमयी और सहृदय नायिका के रूप में प्रस्तुत होती है। उसका चरित्र इस तथ्य को उजागर करता है कि गणिका को समाज भले ही तिरस्कार की दृष्टि से देखे, परंतु उनमें भी पवित्रता, दया और त्याग जैसे गुण विद्यमान हो सकते हैं। दूसरी ओर धूता, चारुदत्त की पत्नी, पतिव्रता, सहनशील और धैर्यशालिनी नारी का प्रतीक है, जो पति की गरीबी में भी अटूट निष्ठा रखती है।
नाटक में दासियों और सेविकाओं की दशा भी दिखाई गई है, जो समाज की अंतिम श्रेणी की स्त्रियों की दु:ख, पीड़ा, वेदना और संघर्ष को रेखांकित करती है। वहीं गणिकाओं का जीवन यह दर्शाता है कि स्त्रियों को प्रायः भोग की वस्तु समझा जाता था, किंतु वसन्तसेना जैसे चरित्र यह सिद्ध करते हैं कि स्त्री केवल भोग्या नहीं, बल्कि प्रेम, करुणा और बलिदान की मूर्ति भी है। प्रस्तुतिकरण के बाद विभागीय शोध समिति, अनुसंधान एवं विकास प्रकोष्ठ व प्राध्यापकों तथा शोध छात्र-छात्राओं द्वारा शोध पर विभिन्न प्रकार के प्रश्न पूछे गए जिनका शोधार्थिनी साधना शर्मा ने संतुष्टिपूर्ण एवं उचित उत्तर दिया।
तत्पश्चात समिति एवं महाविद्यालय के प्राचार्य प्रो0 (डॉ0) राघवेन्द्र कुमार पाण्डेय ने शोध प्रबंध को विश्वविद्यालय में जमा करने की संस्तुति प्रदान किया। इस संगोष्ठी में महाविद्यालय के प्राचार्य प्रो0 (डॉ0) राघवेन्द्र कुमार पाण्डेय, अनुसंधान एवं विकास प्रकोष्ठ के संयोजक प्रो0 (डॉ0) जी. सिंह शोध निर्देशक एवं संस्कृत विभाग के विभागाध्यक्ष डॉ0 समरेन्द्र नारायण मिश्र, प्रो0 (डॉ0)अरुण कुमार यादव, डॉ0 रामदुलारे, डॉ0 अशोक कुमार, डॉ0 अमरजीत सिंह, डॉ0 कमलेश, प्रो0 (डॉ0) सत्येंद्र नाथ सिंह, डॉ0 योगेश कुमार, डॉ0 उमानिवास मिश्र डॉ0 मनोज कुमार मिश्रा,प्रदीप सिंह एवं महाविद्यालय के प्राध्यापकगण तथा शोध छात्र छात्रएं आदि उपस्थित रहे।
अंत मे डॉ0 समरेंद्र नारायण मिश्र ने सभी का आभार व्यक्त किया और संचालन अनुसंधान एवं विकास प्रोकोष्ठ के संयोजक प्रो0(डॉ0) जी. सिंह ने किया।
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