भारतीय विवाह संस्था: एक सामाजिक सांस्कृतिक संगम और वैवाहिक जीवन में दायित्व
विवाह भारतीय समाज की सबसे प्रतिष्ठित संस्थानों में से एक है।
प्रो. आशीष श्रीवास्तव
विवाह भारतीय समाज की सबसे प्रतिष्ठित संस्थाओं में से एक है, जो सांस्कृतिक, सामाजिक और आध्यात्मिक मूल्यों के संगम को दर्शाता है। यह व्यक्तिगत संबंधों से आगे बढ़कर पारिवारिक, सामुदायिक और सामाजिक जिम्मेदारियों को समाहित करता है। विवाह न केवल एक व्यक्तिगत निर्णय है बल्कि पारिवारिक और सामाजिक बंधनों को भी मजबूत करता है। भारतीय विवाह विविधताओं में एकता का प्रतीक है, जहां हर क्षेत्र, धर्म और समुदाय की विशिष्ट परंपराएं अंतर्निहित पवित्रता, निष्ठा और पारिवारिक जुड़ाव की भावना के साथ विवाह समारोहों में झलकती हैं। हिंदू परंपरा में विवाह एक पवित्र संस्कार है जो दो आत्माओं के आध्यात्मिक मिलन को दर्शाता है, जबकि मुस्लिम, ईसाई और सिख समुदायों में भी विवाह को धार्मिक और सांस्कृतिक महत्व दिया जाता है। विवाह के बाद पति-पत्नी परस्पर सम्मान, निष्ठा और साझा कर्तव्यों का पालन करते हैं, जैसा कि मनुस्मृति, रामायण और महाभारत जैसे भारतीय ग्रंथों में उल्लिखित है। राम और सीता तथा सावित्री जैसी पात्रों के माध्यम से आदर्श पति-पत्नी के संबंधों को दर्शाया गया है, जहां पति रक्षक और प्रदाता तथा पत्नी पोषणकर्ता और देखभाल करने वाली होती है। आधुनिक समय में इन भूमिकाओं को समानता और साझेदारी की भावना के साथ पुनर्परिभाषित किया जा रहा है, जहां दोनों साथी आर्थिक स्थिरता और घरेलू जिम्मेदारियों में समान योगदान देते हैं। हालांकि, विवाह के बाद पत्नी का लंबे समय तक माता-पिता के घर में रहना वैवाहिक संबंधों में बाधा डाल सकता है, जिससे भावनात्मक दूरी और विश्वास की कमी उत्पन्न हो सकती है। भारतीय समाज एक नए परिवार की स्थापना पर जोर देता है, जहां दंपति एक साथ अपना जीवन विकसित करते हैं। इसके अतिरिक्त, ससुराल पक्ष का अत्यधिक हस्तक्षेप दंपति की स्वायत्तता को बाधित कर सकता है, जिससे संघर्ष और असंतोष बढ़ सकता है, विशेषकर तब जब पत्नी का ध्यान अपने पति और परिवार से अधिक अपने मायके पर हो जाता है। बुजुर्गों के मार्गदर्शन का सम्मान किया जाता है, लेकिन सीमाएं स्थापित करना भी आवश्यक है ताकि दंपति स्वतंत्र रूप से अपने जीवन का संचालन कर सके। विवाह संस्था भारतीय समाज में साझेदारी, सम्मान और सामूहिक विकास के सिद्धांतों को मजबूत करती है और बाहरी हस्तक्षेप और अलगाव जैसी चुनौतियों को सहानुभूति और समझदारी के साथ संभालने से यह पवित्र संस्था संरक्षित रहती है। हाल के समय में, वैवाहिक जीवन में पत्नी के परिवार द्वारा अनावश्यक हस्तक्षेप के कई उदाहरण सामने आए हैं, जिनके गंभीर परिणाम हुए हैं। उदाहरण के लिए, बेंगलुरु के एक आईटी पेशेवर, अतुल सुभाष। इस घटना ने वैवाहिक विवादों में पत्नी के परिवार के अनुचित हस्तक्षेप और इसके दुष्परिणामों की ओर ध्यान आकर्षित किया है। सुप्रीम कोर्ट ने भी इस प्रवृत्ति पर चिंता व्यक्त की है, जहां वैवाहिक विवादों में पति और उसके परिवार के खिलाफ कानूनों का दुरुपयोग किया जा रहा है। इन घटनाओं से स्पष्ट होता है कि पत्नी के परिवार द्वारा वैवाहिक जीवन में अनावश्यक हस्तक्षेप से पति पर मानसिक और भावनात्मक दबाव बढ़ता है, जिससे वैवाहिक संबंधों में तनाव और टूटन की स्थिति उत्पन्न होती है। यह न केवल पति के मानसिक स्वास्थ्य को प्रभावित करता है, बल्कि परिवार की समग्र संरचना और सामाजिक ताने-बाने पर भी नकारात्मक प्रभाव डालता है। इसलिए, यह आवश्यक है कि वैवाहिक जीवन में पति-पत्नी को अपनी समस्याओं का समाधान स्वयं करने दिया जाए, और परिवार के सदस्य केवल आवश्यकतानुसार समर्थन और मार्गदर्शन प्रदान करें, ताकि वैवाहिक संबंध मजबूत और स्वस्थ रह सकें। विवाह संस्था भारतीय समाज में साझेदारी, सम्मान और सामूहिक विकास के सिद्धांतों को मजबूत करती है और बाहरी हस्तक्षेप और अलगाव जैसी चुनौतियों को सहानुभूति और समझदारी के साथ संभालने से यह पवित्र संस्था संरक्षित रहती है।
(लेखक महात्मा गाँधी केंद्रीय विश्वविद्यालय, मोतिहारी, चम्पारण के पूर्व आचार्य तथा वर्तमान में यूजीसी के अंतर-विश्वविद्यालय अध्यापक शिक्षा केंद्र, वाराणसी में आचार्य, शिक्षा/उच्च शिक्षा नीति तथा संकायाध्यक्ष, शैक्षणिक और शोध हैं)
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