संत्रास, संक्रमण, षडयंत्र और समाधान राख किए जा चुके भूभाग को पुनः राष्ट्र बनाने की चुनौती

संत्रास, संक्रमण, षडयंत्र और समाधान राख किए जा चुके भूभाग को पुनः राष्ट्र बनाने की चुनौती

Sep 12, 2025 - 08:29
Sep 12, 2025 - 08:30
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संत्रास, संक्रमण, षडयंत्र और समाधान राख किए जा चुके भूभाग को पुनः राष्ट्र बनाने की चुनौती

महान भारत के भाल पर हिमालय के उत्तुंग शिखरों से सुसज्जित सनातन संस्कृति की मूल राशि से अभिसिंचित नेपाल आज भस्मीभूत है। संसद भवन, सिंह भवन, राष्ट्रपति भवन, सर्वोच्च न्यायालय, अनेक राजकीय भवनों के साथ ही हजारों संस्थान दो ही दिनों में जल कर राख हो चुके हैं। 
काठमांडू से लेकर नेपाल के लगभग दर्जन भर नगरों से जो सटीक जानकारी मिल रही है उससे इस विनाश का अंदाजा लगाया जा सकता है। जेलों से 13500 कैदी भाग कर कही बिखर गए हैं। पुलिस की कस्टडी खाली हो गई है। अलग अलग पुलिस थाने 760 हिरासत वाले लोगों की तलाश कर रहे हैं। संसद भवन, राष्ट्रपति भवन, नगर पालिकाओं और सुप्रीम कोर्ट के साथ साथ हजारों राजकीय संस्थानों के अधिकांश रिकॉर्ड जल चुके हैं। इनमें जनता के लिए बहुत अपरिहार्य रिकॉर्ड भी शामिल हैं। 
नेपाल को जिस प्रकार से एक विशेष प्रयोगशाला बनाकर लूट का अड्डा बनाया गया वह तो साफ साफ दिख रहा था। ये जेन जेड कोई रातों रात नहीं खड़ा हो गया। सामान्य नेपाली बालक को तो इस शब्द का न तो अर्थ मालूम होगा और न ही इसमें कोई रुचि होगी। इस शब्द के पर्दे के पीछे से नेपाल में एक साथ विधायिका, न्याय पालिका और मीडिया जैसे संस्थानों को आक्रोश ने आग के हवाले कर दिया है। लंपट कार्यपालिका के केवल कार्यालय जले हैं। राजनीति के हर चेहरे को छिपने के लिए जगह नहीं मिल रही। अब कोई पक्ष या विपक्ष नहीं दिख रहा। नेपाल अपने लिए नए नेतृत्व की तलाश बिल्कुल नए ढंग से कर रहा। 
नेपाल को मुझे बहुत करीब से अनेक बार देखने का अवसर मिला है। महाराजा वीरेंद्र वीर विक्रम शाहदेव की सपरिवार हत्या को भी कवर करने का संयोग रहा है। उस जघन्य हत्या के अनेक तारों से भी परिचित होने का अवसर मिला है। हत्या का आरोप भले ही तत्कालीन युवराज दीपेंद्र पर लगा कर सब कुछ लीप दिया गया लेकिन सच यही है कि परिवार की हत्या में युवराज की कोई भूमिका नहीं थी। अंदर के तंत्र के षड्यंत्रों ने ही उस जघन्य कांड को अंजाम दिया था। काठमांडू पर डी कंपनी के आधिपत्य और भारत के सीमावर्ती जिलों से जुड़े नेटवर्क की कहानियां भी याद हैं। वर्ष 90 के दशक में भारत की संसद में गोरखपुर के तत्कालीन सांसद महंत अवेद्यनाथ जी द्वारा भारत नेपाल सीमा की संदिग्ध गतिविधियों को लेकर संसद में उठाए गए विषय के आलेख अभी भी कही मिल जायेंगे। नेपाल लगभग 5 दशकों से बहुत संत्रास झेल रहा है। यह अलग बात है कि सांस्कृतिक रूप से भारत के अभिन्न अंग के रूप में हमारे भाल के तिलक स्वरूप इस भूभाग में चलते आ रहे संक्रमण और षड्यंत्रों को अब समाप्त कर नए नेपाल की रचना का समय आ चुका है।
जहां तक मेरी स्वयं की जानकारी और समझ है, नेपाल का वर्तमान विध्वंस ठीक वैसा ही दिख रहा है जैसे कभी अयोध्या, काशी , मथुरा और सोमनाथ में विध्वंस किए गए होंगे। नेपाल के घटनाक्रम में कथित रूप से जेन जेड के पीछे भी बहुत कुछ अवश्य रहा होगा जिसके बारे में शायद आगे कुछ खुल कर सामने आए।
   नेपाल की स्थिति, संस्कृति, आकृति और वहां की संवेदना की समझ रखने वालो को ठीक से पता है कि माओवादी आंदोलन की रक्त रंजित क्रियाविधि से जबरदस्ती बनाई गई सरकारी व्यवस्थाओं को ध्वस्त होना ही था। हमारी पीढ़ी के जिन लोगों को नेपाल में संविधान सभा के गठन के इतिहास का पता है उन्हें यह भी पता होगा कि मूल नेपाल ने इस व्यवस्था को कभी भी स्वीकार किया ही नहीं। लगभग प्रति वर्ष चेहरे और पार्टियां बदल कर सरकार चलाने वाले जिन चेहरों के प्रति नेपाल के युवाओं में घृणा का भाव उभर कर सामने आया है वे सभी चेहरे नेपाल की मूल भावना के विपरीत कार्य करने वाले रहे हैं। नेपाल को संचालित करने वाले कई बुद्धि विलासियों को भारत के लोग ठीक से जानते हैं जो कभी दिल्ली से संकेत कर के अपनी बौद्धिक संपदा माओवादी आंदोलन के समय खूब झोंकते थे। नेपाल की सत्ता की मलाई खाने वाले कई चेहरों को ये सीख देते थे लेकिन वे इसी सीख को भारत के विरोध में इस्तेमाल कर चीन से गलबहियां करते रहे। किसी का नीम लिखना उचित नहीं लेकिन यह सच है कि उनमें से बहुतेरे अभी भी भारत में रह कर भारत को भी पाकिस्तान, अफगानिस्तान, म्यांमार , श्रीलंका और बांग्लादेश के बाद नेपाली आग से एक चिंगारी लाकर भारत में सुलगाने की चेष्टा में हैं। भारत में वे कितने सफल होंगे यह तो समय बताएगा लेकिन यह कड़वी सच्चाई है कि एक मात्र पर्यटन पर जीवित हिमालय की गोद में खिले सुंदर पुष्प को जिस तरह जलाया गया है, उससे पुनर्जीवित होने में नेपाल को वर्षों लगेंगे। यह अलग बात है कि सहोदर होने के कारण भारत अपने इस पड़ोसी को बहुत ठीक से बल प्रदान अवश्य करेगा। बाबा विश्वनाथ और बाबा पशुपतिनाथ को अलग करने की सामर्थ्य फिलहाल किसी के पास नहीं है।

आचार्य संजय तिवारी

आचार्य संजय तिवारी, वरिष्ठ पत्रकार एवं राजनीतिक समीक्षक

लेख में व्यक्त किए गए सभी विचार  लेखक का स्वयं है।  हिंद भास्कर  किसी भी विचार  को सहमति नहीं प्रदान करता।

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