वक्फ बोर्ड देश के लिए कलंक इसकी आवश्यकता नहीं: स्वामी यतीन्द्रानन्द

Jan 26, 2025 - 16:38
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वक्फ बोर्ड देश के लिए कलंक इसकी आवश्यकता नहीं: स्वामी यतीन्द्रानन्द

महाकुंभ को व्यापारिक कुंभ बनाने की चेष्टा की गयी

कुंभ से वीवीआई कल्चर समाप्त होना चाहिए

महाकुम्भ नगर। जूना अखाड़े के महामण्डलेश्वर स्वामी यतीन्द्रानन्द गिरि का स्पष्ट कहना है कि महाकुंभ को व्यापारिक कुंभ बनाने की चेष्टा की गयी। महाकुंभ तीर्थक्षेत्र है। यहां तीर्थ ही करें पर्यटन के लिए अन्यत्र जायें। हिन्दुस्थान समाचार एजेंसी के वरिष्ठ संवाददाता बृजनन्दन राजू ने महाकुंभ में महामण्डलेश्वर स्वामी यतीन्द्रानन्द गिरि से विशेष बातचीत की।

प्रस्तुत है उनसे बातचीत के अंश।

प्रश्न: महाकुंभ के माध्यम से सरकार पर्यटन को बढ़ावा दे रही है। आप क्या कहेंगे?

उत्तर: यह तपस्या का कुंभ है व्यापार का कुंभ नहीं है। इसको व्यापारिक कुंभ बनाने की चेष्टा की गयी। कुंभ से नि:संदेह व्यापार होगा लेकिन यहां पर तीर्थ की भावना प्रबल होनी चाहिए। यहां पर्यटन की भावना नहीं होनी चाहिए। कुंभ को एक अलौकितता साधना तपस्या सेवा और तीर्थ के रूप में विकसित किया जाय न कि पर्यटन के रूप में। पर्यटन की भावना बढ़ने से कुंभ की आध्यात्मिक भावना दिव्यता प्रभावित होती है।

प्रश्न? वक्फ बोर्ड में संशोधन की मांग हो रही है। आपका क्या मत है?

उत्तर: वक्फ बोर्ड देश के लिए कलंक है। दुर्भाय है कि मूर्खों ने आंख बंद कर भारत में वक्फ बोर्ड बना दिया। भारत में इसकी आवश्यकता नहीं है। भारत आदि अनादिकाल से सनातन मान्यताओं का देश है। भारत ने दुनिया को मानवता का वसुधैव कुटुम्बकम का संदेश दिया है। इस देश के अंदर सनातन बोर्ड का गठन होना चाहिए। हम भारत के प्रधानमंत्री व मुख्यमंत्री से मांग करेंगे कि संतों को दक्षिणा में सनातन बोर्ड दें।

प्रश्न? कुंभ मेला क्षेत्र में लगातार वीवीआई के आगमन से श्रद्धालुओं को परेशानी उठानी पड़ रही है। आपकी क्या प्रतिक्रिया है?

उत्तर: कुंभ से वीवीआई कल्चर समाप्त होना चाहिए। यहां किसी को किसी तरह का प्रोटोकाल नहीं मिलना चाहिए। कुंभ को भव्य बनाने में पूरा जोर है लेकिन मेला प्रशासन को श्रद्धालुओं की कठिनाईयों की चिंता नहीं है। सांस्कृतिक विरासत के प्रति लोगों की मान्यता है इसलिए चाहे जितना पैदल चलना पड़े आदमी को कितना ही कष्ट क्यों न हो वह संगम स्नान के लिए आता है। कुंभ मेला प्रशासन पहली बार बहुत ही नकारात्मक प्रभाव का है। धार्मिकता व आध्यात्मिकता से वह दूर है। पहले के कुंभ में मेला प्रशासन के अधिकारी साधु संतों के आश्रम में जाते थे। उनका हाल चाल पूछते थे। मेला प्रशासन केवल वीवीआईपी की व्यवस्था में लगा है। कुंभ का यह स्वरूप बहुत अच्छा नहीं है। जो यहां पर फाइव स्टार कच्लचर विकसित हो रही है। वह नि:शंदेह कुंभ की अलौकिता को प्रभावित करेगी क्योंकि जो पर्यटन की भावना से आया है उसके अंदर आध्यात्मिकता का भाव पैदा नहीं हो सकता। हमारा कहना है कि इस कुंभ को भव्य बनायें लेकिन इसकी दिव्यता भी बनाये रखें।

प्रश्न? डिजिटल कुंभ की बात खूब हो रही है?आप क्या कहेंगे?

उत्तर: यहां पर कोई वाईफाई की सुविधा दूर—दूर तक नहीं है। इससे अंदाजा लगा सकते हैं कि कुंभ कितना डिजिटल है। लेकिन एक सीमित क्षेत्र को इतना ज्यादा प्रचारित कर व्यवसायीकरण हो रहा है। इसका दुस्परिणाम यह है कि पूरी दुनिया में कुंभ के केवल तीन संदेश गया है। एक आईआईटीएन कहीं साधु बन गया। अखाड़े ने निकाल भी दिया। दूसरा एक माडल आयी थी गंगा जी नहा ली वह प्रचारित हुआ। एक कोई बंजारा जाति की बेचारी लड़की है उसकी आंखें नीली हैं यह तीन संदेश कुंभ से दुनिया में गये। जबकि यहां पर लक्षचण्डी, महाचण्डी यज्ञ समस्त विश्व के कल्याण के लिए हो रहा है। हजारों हजार ब्राहम्ण बैठकर वैदिक वेद मंत्रों का जाप कर रहे हैं। एक से एक तपस्वी साधु बैठकर साधना कर रहे हैं। अनेकों सेवा के काम हो रहे हैं। साधु संत प्रचार प्रसार से दूर रहते हैं वह प्रचार में नहीं साधना में विश्वास रखते हैं।

प्रश्न? सामाजिक समरसता की दृष्टि से महाकुम्भ से आप क्या संदेश देंगे?

उत्तर: भारत की सांस्कृतिक परम्परा अत्यंत प्राचीन है। कुंभ से बढ़कर सामाजिक समरसता कुछ नहीं है। यहां पर आने से पहले गरीब— अमीर जात पात प्रान्त सब बाहर रख देता है। एक ही घाट पर सब एक ही साथ में स्नान कर रहे हैं। साथ में बैठकर भोजन प्रसाद ले रहे हैं। यहां से बड़ा सामाजिक समरसता का कोई संदेश नहीं हो सकता।

साभार-हिंदुस्थान समाचार एजेंसी।

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