यज्ञोपवीत (जनेऊ) का संस्कार और उसे धारण करने की विधि
क्या होता है (जनेऊ )यज्ञोपवीत
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तीन धागों का एक सूत्र , जिसे पुरुष बाएं कंधे के ऊपर से दाईं भुजा के नीचे तक पहनते हैं.
यह धागा त्रिदेवों (ब्रह्मा, विष्णु और महेश) और तीन गुणों (सत्व, रज और तम) का प्रतीक माना जाता है।
इसे पहनने का अर्थ है कि व्यक्ति ज्ञान, कर्तव्य और संयम के युक्त है।
वैज्ञानिक दृष्टिकोण से इस से मानसिक एकाग्रता आती है तथा पाचन क्रिया में भी लाभ होता है.
यह व्यक्ति को स्वच्छता और अनुशासन का पालन करने के लिए प्रेरित करता है
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आइए जानें जनेऊ संस्कार एवं धारणकी विधि
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सबसे पहले हमें जनेऊ में देवताओं का आवाहन करना चाहिए। देवताओं के आवाहन से ही जनेऊ की क्षमता में वृद्धि होती है। बिना आवाहन जनेऊ धागे के सिवाय कुछ नहीं है।
कैसे करें देवताओं का आवाहन
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पहले यज्ञोपवीत को पलाश आदिके पत्ते पर रखकर जल छिड़क दें, फिर निम्नलिखित एक-एक मन्त्र पढ़कर चावल अथवा एक-एक फूलको यज्ञोपवीत पर छोड़ें ।
मन्त्र:-
प्रथमतन्तौ ॐ ओंकारमावाहयामि ।
द्वितीयतन्तौ ॐ अग्नि-मावाहयामि ।
तृतीयतन्तौ ॐ सर्पानावाहयामि ।
चतुर्थतन्तौ ॐ सोममावाहयामि ।
पञ्चमतन्तौ ॐ पितॄनावाहयामि ।
षष्ठतन्तौ ॐ प्रजापतिमावाहयामि ।
सप्तमतन्तौ ॐ अनिलमावाहयामि ।
अष्टमतन्तौ ॐ सूर्यमावाहयामि ।
नवमतन्तौ ॐ विश्वान् देवानावाहयामि ।
प्रथमग्रन्थौ ॐ ब्रह्मणे नमः, ब्रह्माणमावाहयामि ।
द्वितीयग्रन्थौ ॐ विष्णवे नमः, विष्णुमावाहयामि ।
तृतीयग्रन्थौ ॐ रुद्राय नमः, रुद्रमावाहयामि ।
इसके बाद 'प्रणवाद्यावाहितदेवताभ्यो नमः' इस मन्त्रसे 'यथास्थानं न्यसामि' कहकर उन-उन तन्तुओंमें न्यास कर चन्दन आदिसे पूजा करे। फिर जनेऊको दस बार गायत्रीसे अभिमन्त्रित करे।
इतना कार्य करने के उपरान्त यज्ञोपवीत को धारण करने का संकल्प कर विनियोग ( ॐ यज्ञोपवीतमिति मन्त्रस्य परमेष्ठी ऋषिः, लिङ्गोक्ता देवताः, त्रिष्टुप् छन्दः, यज्ञोपवीतधारणे विनियोगः ।)पढ़कर जल गिराये। फिर मन्त्र (ॐ यज्ञोपवीतं परमं पवित्रं प्रजापतेर्यत् सहजं पुरस्तात् ।
आयुष्यमग्रयं प्रतिमुञ्च शुभ्रं यज्ञोपवीतं बलमस्तु तेजः ।। ॐ यज्ञोपवीतमसि यज्ञस्य त्वा यज्ञोपवीतेनोपनह्यामि ।) पढ़कर एक जनेऊ पहने, इसके बाद आचमन करे। फिर दूसरा यज्ञोपवीत धारण करे। (गृहस्थ को एक जोड़ी) एक-एक कर यज्ञोपवीत पहनना चाहिये।
इसके बाद (एतावद्दिनपर्यन्तं ब्रह्म त्वं धारितं मया ।जीर्णत्वात् त्वत्परित्यागो गच्छ सूत्र यथासुखम् ।।) मन्त्र पढ़कर पुराने जनेऊ को कण्ठी-जैसा बनाकर सिर से पीठकी ओर निकालकर उसे जलमें प्रवाहित कर देना चाहिए।
इसके बाद यथाशक्ति गायत्री मन्त्रका जप करे और आगे का वाक्य बोलकर भगवान्को अर्पित कर दे-ॐ तत्सत् श्रीब्रह्मार्पणमस्तु । फिर हाथ जोड़कर भगवान का स्मरण करे।
(विभिन्न पुस्तकों से सम्पादित)
केशव शुक्ल
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