भारतीय ज्ञान परंपरा एक रेखीय नहीं है: प्रोफेसर विश्वनाथ प्रसाद तिवारी
अहिंसा एवं योग भारतीय ज्ञान परंपरा के मूलभूत स्रोत हैं: प्रो. विश्वनाथ प्रसाद तिवारी
भारतीय ज्ञान परंपरा हजारों वर्षों के अनुभवों एवं उपनिषदों से नि:सृत हुई है। वर्तमान वैज्ञानिक खोजें इस विश्वास को पुष्ट करती हैं। जैसे 2022 में भौतिकी का नोबेल पुरस्कार जिस इंटेगलमेंट एवं सुपरपोजिशन की क्वांटम थ्योरी को दिया गया, उससे संबंधित सूत्रों को उपनिषदों में खोजा जा सकता है। जो ब्रह्माण्ड की एकता को दर्शाते हैं। 'अहं ब्रह्मास्मि और तत्वमसि' का सिद्धांत इसी ओर संकेत करता है।
भारतीय ज्ञान परंपरा एक रेखीय नहीं है, बल्कि वैदिक, बौद्धों, जैनों, आजीवकों और चार्वाकों के परस्पर शास्त्रार्थों से निर्मित हुई है। असहमत होने की छूट तथा परंपरा में संशोधन कर सकने की स्वाधीन जिज्ञासा इस ज्ञान परंपरा के विकास की मूल प्रेरक शक्ति रही है। यही कारण है कि 19 वीं -20 वीं सदी में विवेकानंद, अरबिंद, दयानंद सरस्वती एवं गांधी जी जैसे नवजागरण के प्रवर्तकों ने भी तत्कालीन समस्याओं को सुलझाने के लिये भारतीय ज्ञान परंपराओं का आश्रय लिया।
अहिंसा एवं योग भारतीय ज्ञान परंपरा से निकले जीवन के दो मूलभूत स्रोत हैं। इसे दुनिया की सबसे बड़ी पंचायत संयुक्त राष्ट्र संघ ने भी स्वीकार कर लिया है।
स्वाधीनता, समानता एवं भातृत्व की आधुनिक अवधारणा फ्रांस की क्रान्ति से नहीं उपजी बल्कि यह हजारों वर्षों के परंपरागत भारतीय मूल्य हैं। महान विचारकों के चिंतन का स्रोत उपनिषद् है।
उक्त बातें दीनदयाल उपाध्याय गोरखपुर विश्वविद्यालय, गोरखपुर के पुनश्चर्या पाठ्यक्रम के उद्घाटन सत्र में बतौर मुख्य अतिथि प्रो. विश्वनाथ प्रसाद तिवारी ने कहा।
भारतीय ज्ञान परंपरा विषय का प्रवर्तन एवं स्वागत करते हुए हिन्दी एवं आधुनिक भारतीय भाषा तथा पत्रकारिता विभाग के अध्यक्ष प्रो. कमलेश कुमार गुप्त ने कालिदास के ग्रंथों से उदाहरण देकर भारतीय ज्ञान परंपरा के स्रोतों पर प्रकाश डाला। उन्होंने कहा कि भारतीय ज्ञान परंपरा हमेशा शुभ विचारों का स्वागत करती है, हमारे विश्वविद्यालय का ध्येय वाक्य इसकी पुष्टि करता है। उन्होंने भारतीय ज्ञान परंपरा को जीवन से जोड़कर देखा।
कार्यक्रम की अध्यक्षता प्रति कुलपति प्रो. शांतनु रस्तोगी ने किया और कार्यक्रम का कुशल संचालन पुनश्चर्या पाठ्यक्रम के संयोजक प्रो. बिमलेश कुमार मिश्रा ने किया। मदनमोहन मालवीय टीचर ट्रेनिंग केंद्र, गोरखपुर के निदेशक प्रो. चंद्रशेखर ने प्रतिभागियों को सम्बोधित किया।इसी क्रम में हिन्दी विभाग के पूर्व अध्यक्ष प्रो. दीपक प्रकाश त्यागी ने अपने गुरू एवं मुख्य अतिथि साहित्य अकादेमी के पूर्व अध्यक्ष प्रो. विश्वनाथ प्रसाद तिवारी तथा 20 राज्यों से जुड़े हुये प्रतिभागियों और हिन्दी विभाग के अध्यापकों के प्रति आभार व्यक्त किया।
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