सनातन मूल्यों की जिजीविषा। -डॉ सत्येन्द्र कुमार, सीईओ - यूनिवर्सल कम्युनिकेशन मीडिया सेंटर ( यूसीएमसी)।

परहित सरिस धरम नहिं भाई

Dec 1, 2025 - 06:15
Dec 1, 2025 - 08:09
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सनातन मूल्यों की जिजीविषा। -डॉ सत्येन्द्र कुमार,  सीईओ - यूनिवर्सल कम्युनिकेशन मीडिया सेंटर ( यूसीएमसी)।
सनातन मूल्यों की जिजीविषा। -डॉ सत्येन्द्र कुमार,  सीईओ - यूनिवर्सल कम्युनिकेशन मीडिया सेंटर ( यूसीएमसी)।

श्री अयोध्या धाम में 25 नवम्बर, 2025 को श्रीराम जन्मभूमि मंदिर निर्माण कार्य पूर्ण होने पर प्रधानमंत्री नरेंद मोदी और आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत के कर कमलों द्वारा मंदिर के शिखर पर धर्मध्वज की स्थापना सम्पन्न हुई। यह हिन्दू समाज के लिए अत्यंत गौरव का पल था। धर्मध्वज की श्रीराममन्दिर के शिखर पर स्थापना 500 वर्षों की अथक त्याग, संघर्ष और बलिदान की गौरव गाथा से जुड़ी हुई है।

अन्तहीन बंदिशों के बाद भी संघर्ष का दौर चलता रहा, राम भक्त अपनी बलिदान देते रहे! कोई रुका नहीं ,कोई डिगा नहीं, कोई झुका नहीं। सनातनियों की रक्षा हेतु गुरु तेग बहादुर जी के साथ भाई दयाला जी ,भाई सती राम जी ,भाई मतिदास जी ने स्वयं का बलिदान कर दिया। सनातन की प्रभुता की परंपरा का निर्वहन गुरु गोविंद सिंह साहब के चारों साहेबजादाओं ने अपने प्राण न्यौछावर कर दिये। उनका यह आत्मत्याग सनातन के लिए कोई सामान्य घटना नहीं है, सनातन शाश्वत है, यानी जो सत्य से जुड़ा हुआ है। जब प्राचीन काल के इतिहास को देखते हैं तो सनातन निरंतर त्याग का आत्मबोध भी रखता है। सुर असुर के बीच का संघर्ष भी चलता रहा है। आज भी अपनी अस्मिता को लेकर संघर्ष चल रहा है, नाम भले ही बदले गए हों, उपासना के तरीकों को लेकर एक दूसरे से श्रेष्ठता साबित करने के लिए भयाक्रांत कर अपनी मनसा जाहिर कर देते हैं। देश काल परिस्थितियों के अनुरूप सनातन को सत्य की कसौटी पर त्याग, समर्पण, सेवा, श्रद्धा और आस्था पर खरा उतरा है। सनातन को कोई स्वीकार करे या ना करे किन्तु इस बात को अंतर्मन में जरूर स्वीकार किया है कि हिन्दुओं ने 500 वर्षों की संघर्षों का सामना करते हुए जिस प्रकार बलिदान दी, वे स्मृतियां जनमानस में हमेशा तटस्थ रहेंगी। हिन्दू समाज इस बात को हमेशा से स्वीकारता रहा है कि सांच को आंच नहीं तो डर किस बात का? रामलला मंदिर के लिए हिन्दू समाज ने निरंतर अपने लक्ष्य को आगे रखकर अपने आप को बलिदान करता रहा, लड़ाई जारी रही और उसका पूर्ण प्रतिफल 25 नवंबर 2025 को मिला। 25 नवम्बर और इकीसवीं सदी का 25वां वर्ष का सुनहरा संयोग देखने को मिला। श्री राम मंदिर पर भव्य दिव्य मर्यादा पुरुषोत्तम प्रभु श्री राम के परंपरा से जुड़ा हुआ धर्मध्वज शिखर पर लहराया। यानी संघर्ष और बलिदान का यज्ञ पूर्ण हुआ। 25 नवम्बर इस मायने में भी खास है ,यह वही यह तिथि है जो सनातन की रक्षा करने के लिए गुरु तेग बहादुर साहब अपने प्यारे साथियों के साथ अपने आप को बलिदान कर दिया था। यह उनके संघर्षों व त्याग की पूर्णाहुति थी जो कि सनातन के शिखर पर धर्मध्वज धरा से लेकर देवलोक तक फहर रहा है। सनातनियों की ओर से उस संघर्ष त्याग को शत-शत नमन है। यह एक और संयोग देखिए 25 के पश्चात दूसरा दिन 26 नवंबर है यानी संविधान दिवस जो हर व्यवस्था लोकतांत्रिक तरीके से संवैधानिक ढांचे के अंतर्गत चलना मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम के जन्मस्थली की मूल स्थान प्राप्त करने के लिए 100 वर्षों से अधिक समय तक संवैधानिक तरीके से लड़ाई लड़ते रहे और जब देश आजाद हुआ तब भी हम लड़ाई लड़ते रहे। किसी शासक के अंदर इतनी साहस नहीं रहा कि सत्य को स्वीकार कर सके और सत्यतापूर्ण निर्णय ले सके। तब भी सनातन ने न्याय के परिधि में मर्यादा पुरुषोत्तम श्री राम जन्मभूमि के लिए धैर्य , विनम्रता के साथ सत्य के लिए संघर्ष करना यह उनके द्वारा स्थापितआदर्श के अनुरूप संवैधानिक दायरे में रहकर न्याय को प्राप्त किया। यह सनातनियों की शक्ति है ,यह संस्कार है ,यही उनकी संस्कृति है। अपने संस्कृति- परंपरा एवं मर्यादाओं का पालन कर भगवा ध्वज को फहराया है। विश्व के सभी धर्मों, मजहबों में सनातन को छोड़कर कहां लिखा है- "वसुधैव कुटुंबकम्" के भाव को लेकर संवेदना के साथ मानवता के लिए कार्य करना? कहां किसीअन्य धर्म मजहब में लिखा है कि सर्वे भवंतु सुखिन: सर्वे सन्तु निरामया.... यानी सबकी सुख , समृद्धि की मंगल कामना करना। यह भारत जो सनातन है आदि से अनंत तक जो शाश्वत मूल्य पर चलना और जीना सिखाता है। बाबा गोस्वामी तुलसीदास जी कहते हैं परहित सरिस धरम नहिं भाई। यही सनातन है जो सबके हित में मंगलमयी सद्भावनाओं का संचार करता है।

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KeshavShukla विभिन्न राष्ट्रीय साहित्यिक-सांस्कृतिक मंचों पर साहित्य विमर्श, कविता, कहानी लेखन ,स्क्रिप्ट लेखन, नाटकों का मंचन, रेडियो स्क्रिप्ट लेखन, उद्घोषणा कार्य एवं पुस्तक समीक्षा।