विहिप की ध्येय यात्रा के 60 साल

Aug 20, 2024 - 13:39
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विहिप की ध्येय यात्रा  के 60 साल

        अम्बरीष सिंह

राष्ट्रीय प्रवक्ता व विशेष संपर्क प्रमुख विहिप।

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    आगामी श्रीकृष्ण जन्माष्टमी को विश्व हिन्दू परिषद के ध्येययात्रा के 60 वर्ष पूर्ण हो रहे हैं।

            हिन्दू जीवनमूल्यों,परम्पराओं, मानबिन्दुओं के 

प्रति श्रद्धा रखने वाली विश्व के कल्याणार्थ "अजेय हिन्दू शक्ति" खड़ी करेंगे, इस पावन लक्ष्य के लिये "श्रीकृष्ण जन्माष्टमी 1964 को स्वामी चिन्मयानंद के आश्रम पवई मुम्बई में स्थापित विश्व हिन्दू परिषद विश्व भर में निवास कर रहे संपूर्ण हिन्दू समाज को जाति ,मत ,पंथ,भाषा भौगोलिक सीमा से ऊपर उठकर आग्रही,संगठित,सशक्त श्रद्धालु अपने पूर्वज परम्परा,मान्यता, मानबिन्दुओं पर गौरव रखने वाले तथा इनकी पुनर्प्रतिष्ठा करने के लिये सर्वस्व न्योछावर करने का संकल्प लेने वाले हिन्दू को खड़ा करने का संकल्प ले विश्व हिन्दू परिषद जैसा महान संगठन स्थापित हुआ।

 1966 तीर्थराज प्रयागराज में महाकुम्भ में परिषद द्वारा आयोजित प्रथम विश्व हिन्दू सम्मेलन संभवतः महाराज हर्ष के बाद हिन्दू का हिन्दू जीवनमूल्यों की रक्षा के संकल्प के उद्देश्य से महाकुम्भ में सबसे विराट एकत्रीकरण था। देश विदेश से हिन्दू को हिन्दू के नाते खड़ा करेंगे,ऐसा दृढ़संकल्प ले उमड़ी हिन्दू जन शक्ति, मंच का नयनाभिराम दृश्य,हिन्दू समाज ने वर्षों बाद देखा।

 1969 उडूपी कर्नाटक,हिन्दू सम्मेलन,मंच पर प्रमुख पूज्य संतगण और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के द्वितीय सरसंघचालक पूज्य श्री गुरुजी की गरिमामयी उपस्थिति।

पूज्य संतों द्वारा हिन्दू समाज में पराधीनता के लम्बे कालखण्ड के दुष्परिणाम से व्याप्त अश्पृश्यता के विरुद्ध

प्रस्ताव स्वीकार हिन्दू समाज के लिये ऐतिहासिक क्षण,

पूज्य संतो का घोषणा छुआछूत शास्त्रसम्मत नहीं,

जन्म के आधार पर कोई बड़ा नहीं कोई छोटा नहीं,

कोई पावन नहीं कोई अपवित्र नहीं,हम सब ऋषिपुत्र हैं भारतमाता की सन्तान हैं सहोदर भाई हैं,पूज्य संतों ने घोषणा की,             

हिंदवः सोदराः सर्वे, न हिन्दू पतितो भवेत।

मम् दीक्षा हिन्दू रक्षा,मम मन्त्र समानता।।

 1979 में तीर्थराज प्रयाग में संगम के पावन तट पर

द्वितीय विश्व हिन्दू सम्मेलन देश विदेश के प्रतिनिधियों

की सहभागिता। 1981तमिलनाडु प्रदेश के रामनाथपुरम जिले में मीनाक्षीपुरम गांव में हिन्दू समाज के सामुहिक इस्लाम पंथ में धर्मांतरण के बाद परिषद ने देश में एक व्यापक जागरण का अभियान लिया "संस्कृति रक्षा निधि अभियान"व्यापक जागरण और "सेवा निधि " का एकत्रीकरण जिसके माध्यम से देश के गिरिवासी और वनवासी क्षेत्र में सेवकार्यों की एक लंबी श्रृंखला आरम्भ हुई।                       

1983 भाषा और प्रान्त के नाम पर संघर्ष खड़ा करने का प्रयत्न पूरे देश में चल रहा था,आर्य और द्रविड़ , हिन्दी भाषी और गैर हिंदी भाषी जैसे विषय उठाकर हिन्दू समाज कीएकता को तार-तार करने का दुष्प्रयत्न चल रहा था ऐसे कठिन और चुनौती भरे काल में परिषद ने"एकात्मता यात्रा "के नाम से एक अभिनव कार्यक्रम किया। उत्तर से दक्षिण,पूर्व से पश्चिम सम्पूर्ण देश की श्रद्धाकेन्द्र भारतमाता के विग्रह तथा विशाल कुम्भों में अवस्थित पवित्र गंगामाता रथारूढ़ निकल पड़ीं,अपने सुप्त, आपस में संघर्षरत तथा आत्मगौरव को विस्मृत कर चुकेअपने कोटि कोटि पुत्रों को जागृत कर,एकात्मता के सूत्र में आबद्ध करने के लिये।                

7 अक्टूबर 1984 रामजी की नगरी श्रीअयोध्या जी सरयू मैया का पावन तट एकत्रित हुआ रामभक्तों का जनज्वार, पूज्य सन्तों के साथ उपस्थित रामभक्तो ने संकल्प लिया रामजी की नगरी में सरयू के पावन तट पर रामलला की जन्मभूमि में रामलला के भव्य मन्दिर को तोड़कर आक्रांता बाबर द्वारा बनाई गई इमारत में ताले में बंद रामलला को मुक्त करा भव्य मंदिर के निर्माण का,विश्व हिन्दू परिषद ने आरम्भ किया पूज्य संतो के आदेश से, विश्व का सहस्त्राब्दी का सबसे बड़ा अहिंसक जनान्दोलन"श्री राम जन्मभूमि आंदोलन। अंततः हिन्दू शक्ति के सामुहिक जागरण का सुपरिणाम हम सबके जीवनकाल में आया रामलला के भव्य मंदिर निर्माण का मार्ग प्रशस्त हुआ राष्ट्रीय सेभीमान के पुनर्प्रतिष्ठा का एक चरण पूर्ण हुआ।   

   भगवान श्रीकृष्ण के प्राकट्य दिवस पर परिषद की स्थापना एक दैवी संयोग ही है,श्रीकृष्ण के अवतार के कालखण्ड में देश की परिस्थिति और परिषद के स्थापना के समय देश की स्थिति में अनूठा साम्य दिखता है । 

           -हिन्दू समाज के सम्मान के प्रत्येक संघर्ष में परिषद का अनूठा योगदान रहा -

   अमरनाथ यात्रा का पुनर्जीवन,रामसेतु आन्दोलन,गऊ रक्षा और गऊ संवर्धन।                 

-महर्षि देवल,परशुरामाचर्य,स्वामी रामानन्द तथा स्वामी दयानन्द की परम्परा को आगे बढ़ाते हुए परिषद अपने स्थापना काल से ही धर्मान्तरित बंधुओं के घर वापसी के सत्कार्य में लगा है ।

 - मठ मंदिर,अर्चक पुरोहित ,तीर्थ और संस्कृत की पुनर्प्रतिष्ठा का कार्य भी परिषद् सफलता पूर्वक कर रहा है।

-गिरिवासी वनवासी अञ्चल में अपने बंधुओं के बीच सेवा प्रकल्पों के माध्यम से परिषद समाज देवता की साधना में निरन्तर लगा हुआ है।

 -संगठन बढ़ा कार्य बढ़ा लेकिन 60 वर्ष में हिन्दु समाज और देश के समक्ष चुनोतियाँ भी बढ़ी हैं -

- गऊ का बहता हुआ रक्त , अपने ही देश में शरणार्थी हिन्दू, बांग्लादेशी घुसपैठिये,जेहादी आतंकवाद,लव जेहाद, नक्सलवाद, विदेशी धन से ईसाईकरण, परिवार संस्था का क्षरण,जीवनमूल्यों के प्रति बढ़ती अनस्था,हिन्दू समाज का बिखराव,मठ मंदिरों में सरकारों का बढ़ता हस्तक्षेप,सिमटती पतितपावनी गंगा, पर्यटन केंद्र में बदल रहे तीर्थ,अर्चक पुरोहितों की संख्या और गुणवत्ता का क्षरण,धर्मांतरण, अहिन्दूकरण राष्ट्रहित की कीमत पर मुस्लिम तुष्टिकरण तथा एक ही देश में दो विधान।

इन चुनौतियों का सामना करने के लिये हमारा संकल्प है हम अनथक श्रम कर गिरिवासी वनवासी ,नगरवासी ,ग्रामवासी हिन्दू में से लक्षाधिक कार्यकर्त्ता खड़ा कर गांव गांव तक संगठन के तंत्र का विस्तार करेंगे और प्रतिकूलताओं पर विजय प्राप्त करेंगे। हमारा लक्ष्य संगठित ,आग्रही, सक्रिय,जागरूक श्रद्धालु और आक्रामक हिन्दू।

         हम सफल ही होंगे,हमारी ध्येयनिष्ठा और श्रम के साथ हमारे रामजी की कृपा हमारे साथ है ।

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