पालि भाषा एवं साहित्य भारत का सांस्कृतिक राजदूत: प्रो० पूनम टंडन
संस्कृत विभाग ने स्थापित किया मील का पत्थर
पाली भाषा एवं साहित्य पर आयोजित हुआ पहला अंतर्राष्ट्रीय परिसंवाद
भारत में व्यतीत प्रत्येक क्षण का सम्मान करता हूं : डॉ.कन्देगामा दीपवंसालंकार थेरो
श्रीलंका पालि को सौ फीसदी संरक्षित कर रहा है : डॉ.कन्देगामा दीपवंसालंकार थेरो
हिन्द भास्कर, गोरखपुर।
दीनदयाल उपाध्याय गोरखपुर विश्वविद्यालय के संस्कृत विभाग में आज अंतर्राष्ट्रीय परिसंवाद की अध्यक्षता करते हुए कुलपति प्रोफेसर पूनम टंडन ने कहा कि पालि भाषा एवं साहित्य भारत की गौरव गाथा का अनिवार्य अंग है. दुनिया के मानचित्र पर भारत को प्रतिष्ठित करने में पालि साहित्य की बड़ी भूमिका है. हमारा सौभाग्य है कि हम भगवान बुद्ध की परिनिर्वाण स्थली के सन्निकट हैं. संस्कृत विभाग द्वारा पालि पर आयोजित अंतरराष्ट्रीय परिसंवाद भारत सहित विभिन्न देशों के बीच बेहतर अकादमिक एवं सांस्कृतिक समन्वय स्थापित करने की दिशा में अग्रसर होगा. उन्होंने कहा कि पाली भाषा एवं साहित्य हम भारत सांस्कृतिक राजदूत भी कह सकते हैं.
श्रीलंका के बुद्धिस्ट और पाली विश्वविद्यालय से पधारे मुख्य अतिथि डॉ. कन्देगामा दीपवंसालंकार पालि भाषा के महत्व पर प्रकाश डालते हुए भारत और श्रीलंका के अंतर संबंधों की बात की. उन्होंने कहा कि पालि भाषा के माध्यम से भारत और श्रीलंका के संबंध मजबूत हुए. भारतीय इतिहास की परंपरा भी पालि भाषा से ही पूर्ण होती है. संस्कृत के साथ पालि भाषा में शोध की विविध सम्भावनाएं हैं. इसमें मौलिक शोध किया जा सकता है।
इस अवसर पर उन्होंने अपने विभाग से संस्कृत विभाग के साथ समझौता ज्ञापन करने का भी आश्वासन दिया. उन्होंने कहा कि यहां पर पालि का अध्ययन इतनी बड़ी संख्या में छात्र करते हैं, यह बधाई का विषय है। उन्होंने कहा कि भारत में व्यतीत प्रत्येक क्षण का सम्मान करता हूं. उन्होंने यह भी बताया कि श्रीलंका सौ फीसदी पालि को संरक्षित कर रहा है.
इस अवसर पर विशिष्ट अतिथि डॉ.रामवंत गुप्त ने कहा कि पालि, बौद्ध धर्म की पवित्र भाषा है. यह भारत और दक्षिण-पूर्व एशिया के बीच धार्मिक और सांस्कृतिक संबंधों का पुल भी है. भाषा और साहित्य की परिधि के बाहर पालि विभिन्न देशों से हमारा भ्रातृत्व का संबंध स्थापित करता है. इसे प्रगाह करने की दिशा में हमें आगे बढ़ना होगा. संस्कृत विभाग का यह अंतर्राष्ट्रीय परिसंवाद इस दिशा में एक बड़ा प्रयास है.
इस परिसंवाद के समन्वयक डॉक्टर कुलदीपक शुक्ल द्वारा संपादित दो महत्वपूर्ण पुस्तकों का लोकार्पण हुआ, जो डिस्काउंट ग्रुप्स ऑफ पब्लिकेशन, गोरखपुर से प्रकाशित हुई हैं. पहली पुस्तक है 'सप्तपर्णम्' एवं दूसरी पुस्तक है 'कालिदास: साहित्य का अन्तःशास्त्रीय विमर्श'. डॉ. कुलदीपक शुक्ल ने बताया कि सप्तपर्णम् पुस्तक संस्कृत के स्नातक षष्ठ सेमेस्टर के छात्रों के लिए अत्यन्त उपयोगी है, जिसमें आधुनिक संस्कृत साहित्य की सात विधाओं का संकलन किया गया है. जो उत्तर प्रदेश के लगभग समस्त विश्वविद्यालयों में पढ़ाया जाता है।
दूसरी पुस्तक 'कालिदास: साहित्य का अन्तः शास्त्रीय विमर्श' में 40 शोध पत्रों का संग्रह है, जो कालिदास की वैज्ञानिक संचेतना एवं विभिन्न अन्य शास्त्रों से जोड़ते हुए हुए लिखे गए हैं. जैसे कृषि, कला , सौन्दर्य, ऋतु, भूगोल, खगोल, तकनीकी, वास्तु, ज्योतिष आदि.
इस परिसंवाद का विधिवत स्वागत वक्तव्य डॉ. देवेंद्र पाल ने दिया. जबकि संगीतमय आभार ज्ञापन डॉक्टर सूर्यकांत त्रिपाठी ने किया. अंत में गोरक्षनाथ शोधपीठ की डॉक्टर सोनल सिंह ने पाली भाषा में शांति पाठ किया. इस अवसर पर बौद्ध संग्रहालय के निदेशक की मंच पर गरिमामय उपस्थिति बनी रही. इस कार्यक्रम में संस्कृत विभाग के सभी शिक्षक, शोधार्थी एवं विद्यार्थी समेत भिन्न विभागों के भी शिक्षक उपस्थित रहे.
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