विदेशी विचारों को यथावत स्वीकारना बौद्धिक गुलामी : प्रो० राजवंत राव

Oct 21, 2024 - 21:22
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विदेशी विचारों को यथावत स्वीकारना बौद्धिक गुलामी : प्रो० राजवंत राव

शोध, कोई खोज या अविष्कार नहीं है : प्रो. राजवंत राव

अभावों के बीच भी अर्थपूर्ण जीवन बेहतर : प्रो.राजवंत राव

हिन्द भास्कर, गोरखपुर

दीनदयाल उपाध्याय गोरखपुर विश्वविद्यालय के संस्कृत, दर्शनशास्त्र एवं प्राचीन इतिहास विभाग में नव प्रवेशित शोधार्थियों के दीक्षारम्भ कार्यक्रम को अधिष्ठाता, कला संकाय प्रो. राजवंत राव ने संबोधित किया. ध्यातव्य है कि प्रो. राजवंत राव संस्कृत एवं दर्शनशास्त्र विभाग के अध्यक्ष का दायित्व भी निर्वाह कर रहे हैं.

प्रोफेसर राव ने इन तीनों विभागों के दीक्षारम्भ कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए कहा कि शोध ज्ञात से अज्ञात के तलाश की वैज्ञानिक प्रकिया है. शोध वर्तमान का अतीत से संवाद है. ज्ञात तथ्यों के विश्लेषण से तार्किक एवं विवेकपूर्ण निष्कर्ष तक पहुँचना शोध अध्येता का अभीष्ट होता है। उन्होंने कहा कि हमें रिसर्च और इन्वेंशन में फर्क को समझना होगा. 

शोध कोई खोज या अविष्कार नहीं है. दरअसल प्रत्येक बदली हुई देश, काल व परिस्थितियों में पहले से ज्ञात किसी तथ्य या विचार का बारंबार तार्किक व वैज्ञानिक परीक्षण भी शोध है. जाहिर है कि सार्वभौमिक व सार्वकालिक से इतर तथ्य और सत्य भी युगानुरूप बदलते रहते हैं. शोध ऐसे तथ्यों का प्रमाणन एवं अपवर्जन भी करता है.

वर्तमान में अवस्थित शोध अध्येता, अतीत से आ रहे प्रामाणिक तथ्यों का वर्तमान की दृष्टि एवं समस्याओं के मद्देनजर विवेचन करता है।

शोध अध्येताओं के लिए बाहरी विचारों को अपने संस्कृति के अनुरूप विचार प्रक्रिया में गुमफित कर ग्रहण करना, सर्वथा काम्य है. जबकि बाहरी विचारों को सीधे ग्रहण करना एक प्रकार की बौध्दिक दासता है। शोध अध्येता को बौध्दिक दासता से बचना चाहिए। 

शोधार्थी को अपनी भूमिका साक्षी भाव से चरितार्थ करना चाहिए। अभावों के बीच भी अर्थपूर्ण जीवन बेहतर होता है, जबकि समृद्ध किन्तु अर्थहीन जीवन भयंकर उदासी भरा होता है।

प्रोफेसर प्रज्ञा चतुर्वेदी ने कहा कि ज्ञान के उत्पादन में शोधार्थियों की भूमिका महत्वपूर्ण होती है. यदि शोधार्थी गंभीर एवं ईमानदार अध्येता है तो वह समाज को दिशा देने में अपनी निर्णायक भूमिका निभा सकता है.

इस अवसर पर प्राचीन इतिहास विभाग की अध्यक्ष प्रोफेसर प्रज्ञा चतुर्वेदी, संस्कृत विभाग की समन्वयक डॉ लक्ष्मी मिश्रा, दर्शनशास्त्र विभाग के समन्वयक डॉ. संजय राम ने नव प्रवेशित शोधार्थियों का स्वागत किया एवं शुभकामनाएं दी. प्राचीन इतिहास विभाग में संस्कृत विभाग में डॉक्टर देवेंद्र पाल और दर्शनशास्त्र विभाग में डॉक्टर रमेश चंद्र ने आभार प्रकट किया.

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