सूर्य नारायण के उत्तरायण होने का पर्व मकर संक्रांति

Jan 13, 2025 - 19:44
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सूर्य नारायण के उत्तरायण होने का पर्व मकर संक्रांति

      ईसवी सन् शुरू होते ही हमारे देश में सबसे पहले मनाया जाने वाला जो त्यौहार पड़ता है वह है मकर संक्रांति 

     सौरमंडल में दो ऐसे ग्रह हैं जिनका हमारे दिन प्रतिदिन के जीवन में सीधा प्रभाव दिखाई देता है । यदि हम अन्य ग्रह नक्षत्रों की बात करें और कोई व्यक्ति इनमें विश्वास नहीं भी करे तो कम से कम दो ऐसे ग्रह हैं जिनका प्रत्यक्ष प्रभाव सभी के ऊपर पड़ता है  

उन पर किसी भी परिस्थिति में विश्वास तो करना ही होगा ये हैं हमारे जीवन को गति देने वाले सूर्य और चंद्रमा ।

     इनका हमारे भूमंडल के मौसम और जलवायु पर विशेष असर पड़ता है।

    संक्रांति का अर्थ ही होता है बदलाव । सूर्य ग्रह जब दक्षिण में रहते हैं तब शीत ऋतु यानि ठंडक का समय होता है और दिन छोटे होते हैं। लेकिन जब यह उत्तर की ओर अग्रसर होते हैं , जिसे उत्तरायण कहते हैं । उस समय से दिन बड़े होने लगते हैं। क्योंकि सूर्योदय पूर्व से थोड़ा ईशान कोण की ओर बढ़कर होने लगता है और सूर्यास्त भी पश्चिम से थोड़ा वायव्य कोण की ओर बढ़कर होता है । 

     यानि पृथ्वी पर सूर्य की किरणें दक्षिण की अपेक्षा सूर्य के उत्तरायण में स्थिति रहने पर अधिक पड़ती है तभी तो मौसम धीरे - धीरे गर्मी का होने लगता है । 

वैसे तो हमारे देश में चंद्रमा की तिथियों के अनुसार त्योहारों का निर्धारण होता है । लेकिन यह एक पर्व ऐसा होता है जिस दिन सूर्य ग्रह उत्तर दिशा की ओर अग्रसर होने लगते हैं वह होता है 14 जनवरी का ।

 इस दिन को हमारे देश के प्रायः सभी भागों में किसी न किसी तरह से त्यौहार के रूप में मनाया जाता है । इस दिन सूर्य ग्रह बृहस्पति की राशि धनु में अपनी यात्रा पूरी कर अपने पुत्र शनि के पृथ्वी तत्व की राशि मकर में प्रवेश करते हैं । इस दिन लोग अपने आसपास की नदियों में विशेष रुप से गंगा नदी में स्नान और दान करते हैं ।

    मुख्य रूप से तीर्थराज प्रयाग और गंगासागर में मकर संक्रांति के पवित्र पर्व पर स्नान का आयोजन होता है । 

सौभाग्य से इस वर्ष प्रयागराज में महाकुंभ के अवसर पर लाखों श्रद्धालुओं को संगम पर स्नान - दान करके पुण्य अर्जित करने का लाभ मिल रहा है ।

   गोरखपुर में आदियोगी श्री गुरू गोरक्षनाथ के मंदिर में इस दिन से खिचड़ी का मेला शुरू हो जाता है ।

साथ ही संत कबीर दास के निर्वांण स्थल मगहर में भी आस्था का सैलाब उमड़ पड़ता है ।

    इसे खिचड़ी कहने के पीछे धारणा यह है कि चूंकि मौसम बदलता है, इसलिए ऐसा भोजन करते हैं जो सुपाच्य हो यानि आसानी के साथ पच जाए । इस दिन लोग तिल का भी दान करते हैं । यह मौसम सर्दी का होता है इसलिए कहा जाता है कि जिसके पास तिल नहीं होता है । उसके पास भी दान के कारण पहुंच जाता है। क्योंकि तिल की तासीर गर्म होती है । 

    दक्षिण भारत में इसे पोंगल के नाम से जाना जाता है और असम में इसे बिहू कहते हैं। अलग-अलग प्रांतों में अलग-अलग ढंग से इस पर्व को मनाने की परंपरा है।गुजरात और वाराणसी का आकाश इस दिन रंगबिरंगे पतंगों से भरा रहता है ।  

       पौराणिक मान्यता के अनुसार इस दिन राजा भगीरथ ने गंगा जी को स्वर्ग से उतार कर कपिल मुनि के आश्रम में जाकर सागर में मिलाया था ।जिस गंगाजी के पवित्र जल से राजा सगर के साठ हजार शाप ग्रस्त पुत्रों का उद्धार हुआ था । 

       इसी आस्था में गंगासागर तीर्थ के रूप में प्रतिष्ठापित हुआ । जहां प्रतिवर्ष मकर संक्रांति के दिन बड़े रूप में मेले का आयोजन होता है और वहां लोग स्नान करते हैं।

       महाराष्ट्र में ऐसी मान्यता है कि इसी दिन से सूर्य नारायण की गति एक एक तिल आगे बढ़ती है।

     इस दिन को पंजाब और जम्मू-कश्मीर में लोहड़ी के नाम से मनाने की परंपरा है। सिंधी समाज में इसे लाल लोही कहते हैं। तमिल पंचांग का नया वर्ष पोंगल इस दिन से ही प्रारंभ होता है। 

    सूर्य ग्रह से समस्त संसार को ऊर्जा मिलती है और जब पृथ्वी पर इनकी उपस्थिति अधिक देर तक रहेगी ऐसे में ऊर्जा अधिक बढ़ जाएगी । परिणामस्वरूप लोगों के कार्य करने की क्षमता में वृद्धि होगी। रात्रि का समय कम रहेगा, और दिन का समय अधिक होने से कार्य करने के लिए समय भी पर्याप्त मात्रा में मिलने लगता है । साथ ही मौसम में बदलाव भी शुरू हो जाता है।

डॉ. ए. के. पाण्डेय

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