प्रणाम परसाई !नमन अनन्त मूर्ति!
दीपक मिश्र
आज भारत व हिंदी के श्रेष्ठतम व्यंग्य और पद्य लेखक हरिशंकर परसाई की जयंती के साथ साथ पद्मभूषण, ज्ञानपीठ , लोहिया के शिमोगा आंदोलन के सहभागी कन्नड़ के प्रसिद्ध लेखक उडुपी राजगोपालाचार्य अनंतमूर्ति की पुण्यतिथि है, दोनों के अनन्य योगदान को नमन । अनंतमूर्ति अपने को कटिबद्ध लोहियावादी कहते थे और उनकी एक शिकायत रही है कि हिंदी पट्टी के लोहियावादी विचारों पर काम नहीं करते । मुझे हैदराबाद में उनके संदर्शन से वैचारिक संबलन प्राप्त करने सौभाग्य मिला है । वे अपनी साहित्य का प्रेरणाश्रोत लॉरेंस और लोहिया को मानते थे । उनके उपन्यास संस्कार पर फिल्म बनाने का निर्देश लोहिया ने दिया था जिसमें स्नेहलता रेड्डी ने केंद्रीय भूमिका निभाई थीं जो बाद में आपातकाल में जेल गईं और सत्याग्रह के कारण प्राणों की आहुति देने से भी नहीं हिचकी। ये लेखकों और कलाकारों के सामाजिक सरोकारों के प्रति सजगता के श्रेष्ठ उदाहरण हैं । अनंतमूर्ति साहित्य अकादमी के अध्यक्ष भी रहे । उनके लेखन में वंचितों की व्यथा और सामाजिक विडंबनाओं के विरुद्ध खुला युद्ध है । उनसे दो घंटे की बातचीत दो सौ विद्वानों के सत्संग सरीखा था ।
परसाईजी से बड़ा व्यंगकार देश में कोई नहीं हुआ । उनके लेखन से समकालीन इतिहास के स्याह सच की जानकारी मिलती है । गणतंत्र, लोहिया और समाजवाद पर भी
उन्होंने खूब लिखा है । ठिठुरता हुआ गणतंत्र, विकलांग श्रद्धा का दौर, , कहत कबीर, तुलसी दास चंदन घिसें जैसी उनकी कुछ पुस्तकें राजनीति, साहित्य और पत्रकारिता से जुड़े लोगों की जरूर पढ़ना चाहिए । तुलसीदास पर उनकी लेखनी पढ़ने के बाद ही मैंने स्वामी प्रसाद मौर्य जी को समाजवाद से खारिज किया था , यह उनके कलम और किरदार की प्रेरणा है ।
What's Your Reaction?