वासुदेव कृष्ण, महाराज यदु और बाल्मीकि रामायण
आज कल महर्षि वाल्मीकि प्रणीत रामायण पढ़ रहा हूं । रामायण में वासुदेव कृष्ण और राजा यदु का संदर्भ भी आया है , सोचा इस जानकारी को साझा करूं । उत्तर काण्ड के 53वें सर्ग में वर्णित है कि यदुकुल की कीर्ति बढ़ाने वाले वासुदेव के नाम से भगवान विष्णु अवतार लेंगे और राजा नृग का उद्धार करेंगे ।
उपत्स्यते हि लोकेअस्मिन यदूनां कीर्तिवर्धनः
वासुदेव इति ख्यातो विष्णुः पुरुषविग्रहः
इस सर्ग की सीख यही है कि राजा को न्याय देने में विलंब नहीं करना चाहिए । न्यायशास्त्र का मूल सिद्धांत भी है कि न्याय में देरी अन्याय है । महाराज अथवा महर्षि यदु के बारे यू ट्यूब आदि काफी अनर्गल प्रलाप मिलता है, ज्यादातर यदु की लोकछवि उनके पिता राजा ययाति के संदर्भ धूमिल करने की कुत्सित कोशिश की गई है । यह बात मुझे यदु न्यास के अध्यक्ष सतीश उर्फ नागा चौधरी के पुत्र सौरभ चौधरी ने एक बार सामान्य बात चीत के दौरान कही थी । आज रामायण पढ़ते हुए जब राजा यदु का उल्लेख देखा तो वो संदर्भ याद आ गया । रामायण के उनसठवें सर्ग के दूसरे श्लोक में महराज यदु को महायशस्वी और धर्मज्ञ यानी धर्म का ज्ञाता बताया गया है । यह संवाद स्वयं राजा ययाति का है ।
श्लोक इस प्रकार है -
यदो त्वमसि धर्मज्ञो मदर्थं प्रतिगृहताम्
जरा परमिका पुत्र भोगै रास्ते महायशः
मुझे लगता है कि यदु के विरुद्ध विष वमन करने वाले सोच और इस सोच के लोगों को रामायण की यह उक्ति प्रत्युत्तर देने के लिए पर्याप्त है । मुझे अपेक्षा यह कार्य नई पीढ़ी विषेषकर यदुवंशी जरूर करेंगे ।
दीपक मिश्र
What's Your Reaction?