देवकीनन्दन और यशोदापुत्री का अवतरण पर्व
संजय तिवारी
उनका जन्म भी ठीक उसी काल मे हुआ जिस काल मे योगेश्वर कृष्ण का अवतरण हुआ । ठीक वही समय, वही तिथि, वही क्षण। माता यशोदा ने पुत्री एकानंशा को उसी रात में जन्म दिया गोकुल में जिस रात जेल में माता देवकी ने कृष्ण को जन्म दिया । परिस्थिति ऐसी कि दोनों शिशु बदल गए। कथा सभी जानते हैं। थोड़े ही दिन पहले जगत ने श्रीकृष्णजन्माष्टमी मनाई है। तथ्य कहते हैं कि उसी तिथि को एकानंशा का जन्मोत्सव भी मनाना चाहिए । ऐसा कोई करता नही है लेकिन हर नवरात्र में एकानंशा का दरबार जागतिक शक्ति अर्जन के लिए हम मनुष्यों से ऐसा भर जाता है कि उनके धाम में तिल रखने को भी जगह नही मिलती। जी , माँ एकानंशा का ही दरबार है विंध्य पर्वत पर।
जब कंस ने देवकी की आठवीं संतान के रूप में उनकी गोद से एकानंशा को उठा कर पटकना चाहा तो एकानंशा उसके हाथ से छूटते ही आसमान में उड़ गईं और विंध्य पर्वत पर आकर विराजमान हो गईं। उनको कलियुग ने मां विंध्यवासिनी की संज्ञा दी । आज उनके दरबार मे कितनी भीड़ जुटती है इस बारे में कुछ भी लिखने की आवश्यकता नही।
श्रीकृष्ण देह से अब इस धरा धाम पर नही हैं। द्वापर में 128 वर्ष का मानवीय जीवन जीकर वह बैकुंठ चले गए । उनकी जीवन लीला स्वरूप श्रीमद्भागवत मनुष्यों को कलियुग में जीने की राह दिखाने वाला उनका अक्षरविग्रह है। कलियुग में मनुष्य को सद्मार्ग पर चलने की शक्ति देने वाली श्रीकृष्ण की बहन एकानंशा जी आज माता विंध्यवासिनी के रूप में हमारे साथ हैं।
माँ, कृपा कीजिये।
धर्म की जय हो
अधर्म का नाश हो
प्राणियों में सद्भावना हो
विश्व का कल्याण हो।
मां विंध्यवासिनी की जय।।
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