भावज्ञेन कृतज्ञेन धर्मज्ञेन च लक्ष्मण
भावज्ञेन कृतज्ञेन धर्मज्ञेन च लक्ष्मण
भावज्ञेन कृतज्ञेन
धर्मज्ञेन च लक्ष्मण।
त्वया पुत्रेण धर्मात्मा
न संवृत्तः पिता मम।।
(वा. रामायण, अरण्य का. - १५/२९)
अर्थात् - (कृतज्ञ और धर्मज्ञ पुत्र के पिता इस लोक में सदैव जीवित रहते हैं - श्रीराम वचन) हे लक्ष्मण! तुम मेरे मनोभाव को तत्काल समझ लेनेवाले, कृतज्ञ और धर्मज्ञ हो। तुम जैसे पुत्र के कारण मेरे धर्मात्मा पिता अभी मरे नहीं हैं - वे तुम्हारे रूप में अभी भी जीवित ही हैं। (भारत के पुत्रों को कृतज्ञ और धर्मज्ञ होने का संकल्प लेना चाहिए।
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