कविता -तिल

Jul 23, 2024 - 06:40
 0  32
कविता -तिल

तिल

-------

 तेरे गोरे गोरे गालों का तिल 

उड़ा ले गया नींद व दिल।

कितना संभाला इस नांदा को

फिर भी न माना मुआ ये दिल।

वो जब भी देखै हंसके मुझको 

लुटा पिटा सा रहता ये दिल।

ना ही संभले किसी तरह से 

है कातिल निकला तेरा ये 

तिल।

मादक अदायें चंचल नयन तेरे 

उसपर बुलाता तेरा ये तिल।

उड़ उड़ जाये देखो हवा में 

दीवाना मेरा ये बेचारा दिल।

तेरे चाँद से चेहरे पर कैसे 

होंठों के नीचे बैठा ये तिल 

कसम खुदा की उस खुदा 

का भी आया होगा तुझ पे दिल।

सुलोचना परमार "उतराँचली"

What's Your Reaction?

like

dislike

love

funny

angry

sad

wow