मौसिक़ी के उस फ़कीर की याद...
(आकाशवाणी गोरखपुर के संगीत संयोजक उस्ताद राहत अली खां की 80 वीं जयंती पर)
आकाशवाणी गोरखपुर के वरिष्ठ संगीत संयोजक पद पर रहते हुए पूरी दुनियां में अपनी गज़लों की गमक छोड़नेवाले उस्ताद राहत अली खां की आज जन्मतिथि है। उनका जन्म 2फरवरी 1945को लखनऊ में हुआ था। उन्होंने अपनी जीवन यात्रा को 6 दिसम्बर 1994 को विराम दिया था।
इस कलाकार ने, जिसे मैं मौसिकी का फ़कीर कहना पसंद करूंगा, अपनी कर्म भूमि गोरखपुर को बनाई और इसी गोरखपुर में उन्होंने अपनी अंतिम सांसें भी ली थीं। उनके प्रशंसकों का यह मानना है कि उनके संगीत की तानें अब भी तुर्कमानपुर, गोरखपुर में स्थिति कब्रिस्तान में उनकी मजार के आस पास सुनने को मिलती है।
पूर्व केन्द्र निदेशक श्री नित्यानंद मैठाणी, जिन्होंने मेरे सक्रिय सहयोग से उन पर एक पुस्तक "याद- ए -राहत अली"लिखी है और आकाशवाणी गोरखपुर में दो वर्षों तक केंद्र निदेशक के रुप में उनका सानिध्य भी पाया है , सच ही कहते हैं कि "राहत संगीत नहीं बनाता था।संगीत तो उसके हृदय से प्रवाहित होता था।अब उसके हृदय ने धड़कना बंद कर दिया है तो वह अलौकिक संगीत भी समाप्त हो गया है।"
2फरवरी 1945को लखनऊ में जन्मे उस्ताद राहत अली ने मात्र आठवीं तक की शिक्षा प्राप्त की थी।उनके वालिद उस्ताद हुसैन बख्श और मामू उस्ताद मकबूल हुसैन वारसी ,जो लोग आकाशवाणी में वादक कलाकार थे, ने उन्हें संगीत की बारीकियां सिखाई थीं।गायन के क्षेत्र में उनके आदर्श खां साहब उस्ताद बड़े गुलाम अली खां थे।
उस्ताद राहत अली ने पहली जुलाई 1977को आकाशवाणी गोरखपुर में संगीत संयोजक पद का कार्यभार ग्रहण किया था ।आकाशवाणी की सेवा में रहते हुए मात्र 49वर्ष की उम्र में उनका इन्तेकाल हो गया था । वे उस समय संगीत के आसमान के बेहद चमकदार सितारे थे ।
उनकी एकमात्र शिष्या श्रीमती ऊषा टंडन(सेठ)ने अपने उस्ताद की कला वैभव्यता का बख़ान करते हुए कहा है;"वे एक चौमुखी कलाकार थे।एक धुन बनाने में कम्पोजर को माथापच्ची करनी पड़ती है किन्तु वे जन्मजात कलाकार थे।एक बन्द की वे क ई सूरतें ईज़ाद कर देते थे।उनके ख़जाने में संगीत के सिक्कों का अंतहीन ज़खीरा था ।"राहत भाई की वे गंडाबंध शिष्या थीं। यहां इस बारे में एक और कटु सत्य कहना चाहूंगा कि उन्होंने राहत भाई को लौकिक जीवन में दुनियां के सामने अपनी कला का प्रदर्शन करने में मेंटर की सक्रिय भूमिका निभाई थी। राहत मूलतः एक फ़कीर थे और उनको दुनियां दारी से कुछ भी लेना देना नहीं था इसलिए उनको एक प्रैक्टिकल दृष्टि रखने वाले की अनिवार्य आवश्यकता थी ही और अगर वह उनका गंडाबंद शिष्य हो तो क्या कहने!
उनसे कुछ अवधि तक आज की पद्मश्री सम्मान प्राप्त गायिका मालिनी अवस्थी और प्रख्यात सिने गायक दलेर मेंहदीं ने भी संगीत का ककहरा सीखा था जो आज पूरी दुनियां में उनके नाम का भी आवश्यकतानुसार परचम लहरा रहे हैं। आकाशवाणी गोरखपुर जो उनकी कर्म स्थली थी उनकी स्मृति में उनकी अनमोल रिकार्डिंग पर आधारित विशेष कार्यक्रम समय समय पर करता रहा है।
लेखक को भी राहत भाई का भरपूर स्नेह, प्यार, सहयोग और सानिध्य उन दिनों मिला था जब वह आकाशवाणी गोरखपुर में संगीत विभाग में कार्यक्रम अधिकारी पद पर नियुक्त था।
मैं और मेरा समूचा आकाशवाणी परिवार और उससे जुड़े कलाकार अपने इन महान कलाकार पर नाज़ करते रहे हैं और आज उनकी जयंती पर उन्हें पुनः श्रद्धा पूर्वक नमन कर रहे हैं ।
उनके बाल शिष्य, जो अब प्रौढ़ हो चुके है , जनाब देबू सेठ इन दिनों उनकी सभी सोलो या डुएट रिकॉर्डिंग्स यू ट्यूब चैनल पर डाल रहे हैं जिन्हें आने वाली पीढ़ी भी सुन सकेगी। यह समझिए कि देबू जी ने उनको इस वर्चुअल दुनियां के माध्यम से जीवन दे दिया है। उनके प्रति हम सभी विशेष आभार व्यक्त करते हैं। उन्होंने राहत भाई की एक रिकार्डिंग (ग़ज़ल)को यूट्यूब पर डालते हुए लिखा है-
"राग दरबारी पर आधारित इस गज़ल की अदायगी, रागदारी और लयकरी के क्या कहने ! हमारे उस्ताद राहत अली ख़ां साहेब का कोई जवाब नहीं !................
गिरारी की तरह पानी सा चलता गला, और किस जानिब रुख़ करेंगे, इस का किसी को भी नहीं पता होता था, और शायद उनको भी नहीं !
बस तौबा तौबा करता हूं, क्या तैयारी, या यूं कहिए, क्या मिजाज़ और मयार था उनकी गायकी का, जिस को बयां करना नामुमकिन है ! अपने पूरे उरूज में किसी मंच पर जब वो परवाज़ लेते थे, तो उनका इरादा अर्श के पार होता हुआ बस ऐसा रूहानी माहौल बनाता था जिस का कोई सानी नहीं होता था !
इस गज़ल में इस कैफ़ियत का पूरा पूरा एहसास सुननेवालों को मिलेगा। रायपुर का कॉरपोरेशन हाल साल १९८२...मुलाहेज़ा फ़रमाईये !
इस के सिवा न साक़िये मयख़ाना चाहिए..."
मित्रों, राहत भाई की शागिर्द ऊषा टंडन जी, डाक्टर सेठ, देबू सेठ सहित नाचीज़ मैं और मेरा समूचा आकाशवाणी परिवार और उससे जुड़े कलाकार अपने इन महान कलाकार पर नाज़ करते रहे हैं और आजीवन करते रहेंगे। आज उनकी जयंती पर उन्हें पुनः श्रद्धा पूर्वक याद करते हुए उनको नमन कर रहे हैं ।
प्रफुल्ल कुमार त्रिपाठी
सेवा निवृत्त कार्यक्रम अधिकारी ,आकाशवाणी
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